नंदा :53 वर्ष की उम्र में की सगाई फिर भी क्यों उम्र भर बनी रही कुंवारी विधवा ? फिल्मो का शौक न था फिर भी क्यों बनी अभिनेत्री? Nanda Biography.

नंदा: उनके चेहरे पर ऐसी मासूमियत थी की दर्शक ही नहीं उनके साथी कलाकार और फ़िल्म के निर्देशक तक उन पर फिदा हो जाते थे। उन्होंने ग्लैमरस रोल किए तो लोगों ने नकार दिया और सीधी साधी भूमिका में आई तो उनकी लोकप्रियता सातवें आसमान पर जा पहुंची। उन्होंने 5 साल की छोटी उम्र में ही अभिनय शुरू कर दिया था और 10 साल की उम्र तक वो हीरोइन बनकर अवार्ड भी जीत चुकी थी।

लेकिन क्या आप जानते है ये अदाकारा अपने बचपन में ही फिल्मों में काम करना नहीं चाहती थी? क्या आप सोच सकते हैं की इस अभिनेत्री का पूरा परिवार फिल्मों से जुड़ा था लेकिन उन्हें भी फिल्मों में पांव जमाने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा। और क्या आप यकीन कर सकते हैं कि इस खूबसूरत हसीना को करोड़ों लोग चाहने वाले थे लेकिन उन्होंने जिससे प्यार किया उसे सगाई करने के लिए 53 वर्ष की उम्र तक इंतजार किया और आखिरकार उनसे भी शादी नहीं हो सकी। कौन थी वो अभिनेत्री और क्यों वह रह गई सारी उम्र अकेली जानेंगे और भी बहुत कुछ ।

Sure, here is the information presented in two columns:

जन्म1939
कोल्हापुर,ब्रितानी भारत
मौतजनवरी 2014 (आयु 2010–2011)
मुम्बई, भारत
आवासमुम्बई, महाराष्ट्र, भारत
पेशाअभिनेत्री
कार्यकाल1957–1995 (सेवानिवृत्ति)
पुरस्कारफ़िल्म आँचल (1960) के लिए
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार
नंदा

नंदा का शरुआती जीवन:

नंदा
नंदा

आज हम रुपहले परदे की एक ऐसी अदाकारा के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो अपनी सीधी सादी भूमिका में ग्लैमरस हीरोइनो पर भी भारी पड़ती थी या मशहूर अभिनेत्री थी। यह मशहूर अभिनेत्री थी नंदा । 8 जनवरी 1939 को कोल्हापुर के एक फिल्मकार परिवार में जन्मी नंदिनी उर्फ नंदा के पिता का नाम था विनायक दामोदर, कर्नाटकी और उन्हें मराठी फिल्मों में मास्टर विनायक के नाम से जाना जाता था। वो मराठी फिल्मों के जाने माने ऐक्टर, डाइरेक्टर व प्रोड्यूसर थे।

नंदा सात भाई बहनों में तीसरे नंबर की थी। उनके परिवार में कई फिल्मकार थे जो मराठी व हिन्दी फिल्मों में जाना माना नाम थे बाबू राव पिंडारकर ,भाईजी पिंडारकर और विशांत राम उनके करीबी रिश्ते में भाई थे। मास्टर विनायक मंगेशकर परिवार के भी काफी करीबी थे और उन्होंने ही अपनी फ़िल्म पहली मंगला गौर में लता मंगेशकर जी को बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट उतारा था।

नंदा ने कैसे रखा फिल्म इंडस्ट्री में कदम :

नंदा
नंदा

नंदा की फिल्मों में एंट्री की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। वर्ष 1944 में वो 5 साल की थी तो 1 दिन जब वो स्कूल से लौटी तो उनके पिता ने कहा, कल तैयार रहना। फ़िल्म के लिए तुम्हारी शूटिंग है। इसके लिए तुम्हारे बाल भी काटने होंगे। दरअसल, फ़िल्म में उनकी भूमिका एक लड़के की थी। बाल काटने की बात सुनकर नंदिनी नाराज हो गई। उन्होंने कहा, मुझे कोई शूटिंग नहीं करनी। बड़ी मुश्किल से माँ के समझाने पर वह शूटिंग पर जाने को राजी हुई। वहाँ उनके बाल लड़कों की तरह छोटे छोटे काट दिए गए। इस फ़िल्म का नाम था मंदिर। इसके निर्देशक नंदा के पिता विनायक दामोदर ही थे।

फ़िल्म पूरी होती उससे पहले ही नंदा के पिता का निधन हो गया। बाद में उनके पिता के एक मित्र डाइरेक्टर ने इस फ़िल्म को पूरा किया। घर की आर्थिक हालत बिगड़ने के चलते नंदा के छोटे कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ आ गया। मजबूरी में उन्होंने फिल्मों में अभिनय करने का फैसला किया। चेहरे की सादगी और मासूमियत को उन्होंने अपने अभिनय की ताकत बनाया। वो रेडियो और स्टेज पर भी काम करने लगी। नन्हे कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी उठाते हुए नंदा महज 10 साल की उम्र में ही हीरोइन बन गई।

लेकिन हिंदी सिनेमा की नहीं बल्कि मराठी सिनेमा की मराठी डाइरेक्टर दिनकर पाटिल की निर्देशित फ़िल्म कुलदेवता के लिए नंदा को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने विशेष पुरस्कार से भी नवाजा था। नंदा ने कई मराठी और गुजराती फिल्मों में काम किया। हिंदी फिल्मों में उन्होंने बतौर हिरोइन 1956 में अपने चाचा वि शांताराम की फ़िल्म तूफान और दिया में काम किया था। कहते हैं शांताराम जी ने उन्हें एक पारिवारिक समारोह में साड़ी में देखा था और उसी वक्त उन्हें अपनी फ़िल्म में साइन कर लिया था।

कई फिल्मो सुपरहिट रही:

1959 में नंदा ने फ़िल्म छोटी बहन में एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया था, जिसकी आंखें एक हादसे में चली जाती हैं। उनका अभिनय दर्शकों को बेहद पसंद आया था। उस दौरान लोगों ने उन्हें सैकड़ों राखियां भेजी थी। इसी साल राजेंद्र कुमार के साथ उनकी फ़िल्म धूल का फूल सुपरहिट रही। इस फिल्म ने नंदा को बुलंदियों पर पहुंचा दिया। हलाकि इस भूमिका से वो परेशान भी थी लेकिन इसके बावजूद एक बार फिर 1960 की फ़िल्म काला बाज़ार में वो देव आनंद की बहन बनी। इस फ़िल्म के पीछे भी एक दिलचस्प वाक्य है।

जब देव आनंद साहब ने काला बाज़ार में बहन की भूमिका निभाने के लिए उनसे संपर्क किया तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि पर्दे पर बहन बन जाने के बाद वो इस हैंडसम हीरो की हीरोइन कभी नहीं बन पाएंगी, लेकिन देव साहब ने उन्हें आश्वासन दिया कि वो अपनी अगली फ़िल्म में उन्हें अपने ऑपोजिट लेंगे और कहा देव अपना वादा निभाएगा। अगले साल यानी 1961 में फ़िल्म हम दोनों में नंदा ने उनकी आदर्श पत्नी की भूमिका निभाई। नंदा ने कभी नए अदाकारों के साथ अभिनय करने में संकोच नहीं किया।

जगदीप के साथ फ़िल्म भाभी में महमूद के साथ फ़िल्म कैदी नंबर 911 में मनोज कुमार के साथ फ़िल्म बेदाग में धर्मेंद्र के साथ मेरा कसूर क्या है मैं जितेंद्र के साथ फ़िल्म परिवार में और संजीव कुमार के साथ फ़िल्म पति पत्नी में उन्होंने बेजिज़क होकर काम किया। उन्होंने राज़ कपूर साहब के साथ फ़िल्म आशिक में बेहद सशक्त अभिनय किया है । इस फ़िल्म में वो राज़ कपूर की पत्नी बनी थी। नंदा ने सबसे ज्यादा आठ फिल्मों शशि कपूर के साथ की थी।

दोनों ने 1961 में चार दीवारी और 1962 में मेहंदी लगी मेरे हाथ जैसी फिल्मों की, लेकिन शशि कपूर के साथ सुपर हिट फ़िल्म रही 1965 में आई जब जब फुल खिले। वर्ष 1965 में तीन देवियां और गुमनाम उनकी सुपरहिट फिल्मों रही हैं।अगले साल यानी वर्ष 1966 में उनकी फिल्मों, पति, पत्नी और नींद हमारे ख्वाब तुम्हारे ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया। वर्ष 1967 में परिवार और वर्ष 1968 में अभिलाषा व जुआरी आदि फिल्मों ने उन्हें लोकप्रियता की नई ऊंचाईया दी। वर्ष 1969 में उनकी पांच फिल्मों आई।

ये फिल्मों थी बेटी राजा साहेब इत्तफाक, बड़ी इजी और धरती कहे पुकार के। कई हिट फिल्मों देने के बावजूद नंदा की अभिनय प्रतिभा का सही इस्तेमाल कम ही हो पाया। शायद उनके अभिनय का पारखी निर्देशक उनकी किस्मत में नहीं था। नाजुक और प्यारी सी लड़की की छवि तोड़ने के लिए नंदा छटपटा रही थी। राजेश खन्ना के साथ फ़िल्म इत्तफाक में उन्होंने नेगेटिव किरदार तक निभाया। इस रोल के लिए साधना और माला सिन्हा दोनों ने इनकार कर दिया था। लेकिन नंदा ने चैलेंज स्वीकार किया।

खास बात यह थी कि उन्हीं दिनों फ़िल्म द ट्रेन में नंदा राजेश खन्ना के साथ एक सीधी साधी आदर्श नारी की भूमिका में काम कर रही थी। जब बी आर चोपड़ा साहब ने इस बारे में चर्चा की तो नंदा ने मुस्कुराते हुए कहा, आप फिक्र मत करें। मैंने पहले ही शॉट में अपनी अलग पहचान बना ली है। फ़िल्म खांसी लोकप्रिय रही बताते हैं कि इसके 2 साल बाद राजेश खन्ना की नंदा के साथ एक और फ़िल्म जोरू का गुलाम रिलीज़ हुई। तब तक राजेश खन्ना सुपर स्टार बन चूके थे। फ़िल्म के डिस्ट्रीब्यूटर ने इस बात का फायदा उठाते हुए पोस्टरों पर उनका नाम बड़े अक्षरों में नंदा से ऊपर छपवा दिया था।

राजेश खन्ना को इस बात का पता चला तो उन्होंने फ़ोन करके डिस्ट्रीब्यूटर से पोस्टरों को बदलवाया और नंदा का नाम ऊपर करवाया। वर्ष 1973 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में नंदा ने ड्रग एडिट की भूमिका निभाई थी। हालांकि उनका अभिनय सशक्त था, लेकिन फ़िल्म फ्लॉप हो गई।

उन्हें समझ में आ गया कि उनके सहज और स्वाभाविक अभिनय को ग्लैमर का रंग देने की कोशिश में उनकी अपनी पहचान भी खत्म हो जाएगी। इसके बाद नंदा ने उसी साल रिलीज छलिया वर्ष 1974 में आई फ़िल्म असलियत व जुर्म और सजा और वर्ष 1977 में आई फ़िल्म प्रायश्चित जैसी फिल्मों की, जिसमें उनका रोल सरल और घरेलू हीरोइन का था। इन फिल्मों के लिए उन्हें प्रशंसा भी मिली, लेकिन धीरे धीरे नंदा का समय खत्म हो रहा था।

इसका एहसास भी उन्हें हो रहा था, इसलिए बेहद शालीनता से उन्होंने खुद को रुपये परदे की चकाचौंध से अलग कर लिया। 80 के दशक में वो एक बार फिर सिल्वर स्क्रीन पर लौटी लेकिन कैरेक्टर रोल में 1981 में आई आहिस्ता आहिस्ता 1982 में आई प्रेम रोग और 1983 में रिलीज़ हुई मजदूर में उन्होंने हीरोइन की माँ की भूमिका निभाई थी। यह एक दिलचस्प था कि तीनों ही फिल्मों में उनकी बेटी की भूमिका पद्मिनी कोल्हापुरे नहीं निभाई थी।

नंदा का निजी जीवन, नंदा क्यों रह गई कुंवारी:

नंदा

निजी फ्रंट पर देखें तो परिवार में मौजूद भाई बहनों की जिम्मेदारियाँ उठाने में उन्हें अपने बारे में सोचने का कभी मौका ही नहीं मिला। उन्हें कई अभिनेताओं और निर्देशकों से विवाह के प्रस्ताव मिले लेकिन वह शादी के लिए तैयार नहीं हुई। कहते हैं कि फ़िल्म जब जब फूल किले की शूटिंग के दौरान उन्हें एक बेहद हैंडसम मराठी फौजी अधिकारी ने देखा और उन पर फिदा हो गया। बताया जाता है कि वो अधिकारी शादी का प्रस्ताव लेकर नंदा के घर वालों तक भी पहुंचा था। लेकिन ये अभिनेत्री इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं हुई।

डायरेक्टर मनमोहन देसाई उन्हें पसंद करते थे लेकिन बेहद शर्मिली नंदा ने उन्हें कभी अपने प्यार का इजहार करने का मौका ही नहीं दिया। कहते हैं मनमोहन देसाई ने वर्ष 1969 में जीवनप्रभा गाँधी नाम की युवती के रिश्ते को महज इसलिए स्वीकार किया क्योंकि इनकी शक्ल नंदा से बहुत मिलती जुलती थी। नंदा को सब पता था लेकिन उन्होंने कभी उनकी घरेलू जिंदगी में दखल नहीं दिया। मनमोहन की शादी के बाद नन्दा भावनात्मक तौर पर अंधेरों में खो गई। मनमोहन भी अपनी शादीशुदा जिंदगी में व्यस्त हो गए, लेकिन कुछ समय बाद ही 1979 में उनकी पत्नी का निधन हो गया।

इसके बाद नंदा की करीबी दोस्त वहीदा रहमान ने दोनों के बीच पुल का काम किया और उन्हें आपस में मिलवाया। वहीदा रहमान के ही ज़ोर देने पर वर्ष 1992 में 53 साल की नन्दा ने 55 साल के मनमोहन देसाई से सगाई कट ली। दोनों जल्दी ही शादी भी करने वाले थे, लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। सगाई के कुछ ही दिनों बाद नन्दा की माँ गंभीर रूप से बीमार पड़ गई। और शादी कुछ महीनों के लिए टल गई। वर्ष 1994 में मनमोहन देसाई की ये एक हादसे में मौत हो गई। दोनों कभी भी एक नहीं हो पाए और नंदा अविवाहित रह गई। नंदा की आखिरी फ़िल्म थी प्रेम रोग।

कहा जाता है कि नन्दा जब भी बाहर जाती थी तो वो सफेद साड़ी में जाती थी। क्योंकि वह मन ही मनमोहन देसाई को अपना पति मान चुकी थी। उनके निधन के बाद से नंदा अकेली हो गई। उन्होंने ज्यादा किसी से बात करने भी बंद कर दिया। उनकी ख़ास दोस्तों में माला सिन्हा और वहीदा रहमान थी। 75 साल की उम्र में 25 मार्च 2014 को नंदा का निधन हो गया।

तो दोस्तों हमें कमेंट करके अवश्य बताए अगर आपके पास अभिनेत्री नंदा से जुड़ी कोई और जानकारी हो तो नमस्कार।

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