दुर्गा खोटे: भारतीय सिनेमा की ऐसी माँ जो वास्तव में शेर से लड़ी जवान बीटा खोया और फिल्मो में औरतो के लिए काम करने का रास्ता बनाया । Durga Khote Biography.

दुर्गा खोटे:इनके जैसी ममता किसी और चेहरे पर कभी नजर ही नहीं आई।  इन्हें आप सिनेमा की माँ कह सकते हैं इन्होंने बड़े से बड़े और छोटे से छोटे ऐक्टर के साथ काम किया और आप अचंभा करेंगे ये जान कर की आज के सबसे बड़े ऐक्टर किंग खान यानी शाहरुख खान को सबसे पहला ब्रेक इन्होंने ही दिया था। अपनी एक धारावाहिक जिसे इन्होंने प्रोड्यूस किया था। और जहाँ इनके जमाने में जब ये फिल्मों में काम करती थी तब म्यूट फिल्मों बनती थी।

म्यूट फिल्मों से लेकर बोलती फिल्मों में इन्होंने काम किया और जब ये फिल्मों में काम करती थी तब सिर्फ वेश्याओं को फिल्मों में देखा जाता था लेकिन इन्होंने अच्छे घर की लड़कियों के लिए भी फिल्मों में रास्ता बनाया। आज हम बात करें एक बहुत ही महान अदाकारा की जिनका नाम है दुर्गा खोटे। दुर्गा खोटे जिन्हे आज भी लोग बार बार देखना पसंद करते है । माँ दुर्गा खोटे जी का एक सीन है कर्ज फ़िल्म में उन्होंने काम किया था। फ़िल्म उतनी चली नहीं थी, लेकिन फ़िल्म में कुछ करैक्टर्स अपनी छाप छोड़ गए थे, जिसमें सिमी अग्रवाल भी एक थी।

लेकिन दुर्गा खोटे ने माँ का जो रोल निभाया था उसे देखकर दर्शक जब फ़िल्म से बाहर आते थे वो सब गाने भूल जाते थे। ऋषि कपूर को भूल जाते थे, फ़िल्म का क्लाइमॅक्स नहीं, लेकिन माँ का वो दर्द एक सीन है जब उनका बेटा दोबारा जन्म लेकर वापस आता है। बहुत कम उम्र में वो मर जाता है जब दोबारा जन्म लेकर वापस आता है। जब वो धुंधलाई हुई आँखों से चश्मा लगा हुआ है, बूढ़ी हो चुकी है और देखती है, शकल दोबारा जनम लेकर बेटा आता है लेकिन फिर भी वो पहचान जाती है और कहती है तू रवि है रवि मेरे बेटे कलेजा निकल आता है।

इस सीन को देखकर आप ये फ़िल्म देखिएगा। ये फ़िल्म एक तरह से ये सीक्वेंस एक तरह से मैं कहना चाहूंगा ये कोहिनूर का हीरा है। आप इस सीक्वेंस को बार बार देखें।दोस्तों जैसे 1960 की एपिक फ़िल्म कोई भूल नहीं सकता। ये फ़िल्म सब ने देखी है जिसमे सलीम की माँ जोधा भाई का बेहतरीन रोल निभा कर दुर्गा ने इतिहास रच किया था। हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर की सबसे रईस पड़ी लिखी और इज्जतदार खानदान से ताल्लुक रखने वाली हीरोइन थी। एक दौर में जब सिनेमा के लिए महिलाओं को बहुत असभ्य माना जाता था, सिनेमा को सभ्य नहीं माना जाता था।

ऐसे में पुरुष ही महिलाओं के कैरेक्टर निभाते थे। उस दौर में पति की मौत के बाद अपने दो बच्चों की परवरिश के लिए दुर्गा मजबूरन फिल्मों में आई और 26 साल के विधवा दुर्गा जब फिल्मों में आई तो समाज ने उनका जमकर विरोध किया। लेकिन दुर्गा ने अपने हुनर से खुद को सिनेमा में स्थापित करने के साथ साथ महिलाओं के लिए एक रास्ता बनाया। उन्होंने बताया कि ये इंडस्ट्री इस इंडस्ट्री में कोई खराबी नहीं है। इसमें कोई भी आ सकता है।

पहली दो भाषाओं में जो फ़िल्म बनी थी वो पहली फ्रीलॅनसर एक्ट्रेस बन के इन फिल्मों में काम किया और इतिहास रचा। कहा जाता है की दुर्गा इतनी साहसी महिला थी की एक बार अपने क्रू मेंबर को बचाने के लिए वो चीते से लड़ पड़ी थी रियलिटी में लेकिन वो तब टूट गई थी। जब उन्होंने अपने जवान बेटे को खो दिया। दुर्गा तब भी नहीं रुकी और पर्दे की सबसे फेमस माँ बन कर दिखाया। दोस्तों दुर्गा खोटे जी को दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिला है। ऐसी वो चौथी महिला रही है जिन्हें ये अवार्ड मिला।

Here’s the information formatted into a two-column table:

DetailsInformation
Nameवीता लाड
Birth Date14 जनवरी 1905
Birth Placeबम्बई, बम्बई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (वर्तमान मुंबई, महाराष्ट्र, भारत)
Death Date22 सितम्बर 1991 (आयु 86)
Death Placeबम्बई, महाराष्ट्र, भारत
Professionsअभिनेत्री, फ़िल्म निर्माता
Active Years1931–1983
Familyविजू खोटे (भतीजा), शुभा खोटे (भतीजी), भावना बलसावर (पोती)
Awardsसर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए बीएफजेए पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार
Honorsपद्म श्री (1968), महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार (1970), दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1983)
दुर्गा खोटे

दुर्गा खोटे का शुरूआती जीवन:

दुर्गा खोटे
दुर्गा खोटे

ये बात है 14 जनुअरी 1905 की। गोवा के कोंकड़ी ब्राह्मण परिवार में पांडुरंग श्याम राव लाड और मंजुला बाई के घर दुर्गा कोटे का जन्म हुआ था। जनम के समय उन्हें वीटा लॉर्ड नाम दिया गया था। जिनकी परवरिश कांदेवाड़ी के साथ एक समृद्ध परिवार में हुई थी। गुलाम भारत के उस दौर में महिलाओं की या तो कम उमरो में शादी करवा दी जाती थी या उन्हें घर की चार दिवारी में बंद कर दिया जाता था। शादी करवा के या पर्दे में रख कर घर में बंद कर दिया जाता था।

हालांकि फिर भी इज्जतदार और रईस खानदान से वो तालुक रखती थी इसलिए उन्हें पढ़ाई करने की आजादी मिली और उन्होंने कैथेड्रल है स्कूल से अपनी स्कूलिंग पूरी करने के बाद सेंट ज़ेवर कॉलेज से बी ए की डिग्री हासिल की। पढ़ाई पूरी करने के बाद क्या हुआ? वही जो उस टाइम पर सब लोग सोचते थे, जो करते थे बहुत जल्दी शादी हो जाती थी। पढ़ाई पूरी होते ही सबसे पहले उनकी शादी खोटे परिवार के इकलौते बेटे विश्वनाथ खोटे से करा दी गई।

विश्वनाथ एक मेकानिकल इंजीनियर थे जिन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। अप्पर मिडिल क्लास वाले खोटे परिवार में ज्यादातर लोग मॉडर्न और अंग्रेजी बोलते थे, जिनके पूर्वज बैंकर हुआ करते थे। शादी के बाद दुर्गा ने अपनी बी ए डिग्री हासिल की और फिर वो घर गृहस्थी में ही लग गई। जब दुर्गा ने दो बेटों वकुल और हरिन को जन्म दिया तो एक तरह से उनका परिवार संपन्न हो गया था। दोनों खुशी खुशी जिंदगी बिता रहे थे कि अचानक एक हादसे में दुर्गा के पति विश्वनाथ का निधन हो गया। महज 26 साल की उम्र में दुर्गा हस्ता खेलता परिवार उनका पूरा बिखर गया था।

वो विधवा हो गई थी। पति की मौत के बावजूद भी दुर्गा अपने दोनों बेटों के साथ ससुराल में ही रह रही थी। जब कुछ महीनों बाद उनके ससुर भी गुजर गए तो उनके परिवार का खर्च कुछ रिश्तेदार मिलकर उठाते थे। घर चलाने के खर्च के साथ साथ दुर्गा के परिवार वाले उन्हें ताने देते थे। इससे तंग आकर 1 दिन दुर्गा ने खुद ही कमाने का फैसला किया। वो पढ़ी लिखी तो थी इसलिए फिलहाल उन्होंने आस पड़ोस के बच्चों को घर बुलाकर ट्यूशन देनी शुरू करी।

इसी बीच दुर्गा की बहन शालिनी ने उन्हें बताया कि प्रभास फ़िल्म कंपनी में काम करने वाले उनके दोस्त जे बी हेच वाडिया को फ़िल्म फरेवी जाल के लिए एक अंग्रेजी बोलने वाली लड़की की तलाश है। ये रोल पहले शालिनी को ही मिला था लेकिन उन्होंने अपनी बहन का नाम सुझाव कर दिया कि वो बहुत खूबसूरत है। उनसे आप बात करिए वो इस रोल के लिए अच्छी लगेंगी।

दुर्गा खोटे को फिल्मो में कैसे मिला काम और कैसे चित्ते से लड़ी:

दुर्गा खोटे
दुर्गा खोटे

दोस्तों, उस ज़माने में एजुकेटेड और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली लड़कियां सिर्फ विदेश में ही मिलती थी, तो दुर्गा को ये रोल आसानी से मिल गया। ब्राह्मण परिवार की विधवा दुर्गा को जब फिल्मों में काम मिला तो परिवार और समाज ने इसके खिलाफ़ आवाज उठाई। इसकी दो वजह थी पहली की वो एक इज्जतदार खानदान से थी और सिनेमा में काम करना एक असब्य पेशा माना जाता था। वो ये कहते थे कि इन इस पेशे में तो सिर्फ पेशेवर लड़कियां यानी सिर्फ प्रॉस्टिट्यूट आती है, जिसकी तुलना वेश्यावृत्ति से होती थी और दूसरा कारण था उनका विधवा होना।

समाज के विरोध के बावजूद दुर्गा ने अपने बेटों के लिए और आर्थिक तंगी को खत्म करने के लिए फिल्मों में काम करना एक्सेप्ट किया। पहली फ़िल्म के बाद दुर्गा सिनेमा से दूरी बनाना चाहती थी, लेकिन वि शांताराम के कहने पर उन्होंने काम करना जारी रखा क्योंकि विशांताराम एक ऐसा नाम है दो सोशल मुद्दों पे बहुत फिल्मों बनाते थे। बहुत अच्छी अच्छी उन्होंने फिल्मों बनाई है जो आज भी मिसाल है। दोस्तों प्रभात फ़िल्म कंपनी की ही एक और फ़िल्म थी। माया मच्छिंद्रा जिसमें दुर्गा खोटे ने रानी का रोल प्ले किया, जिसका पालतू जानवर एक चित्ता था।

फ़िल्म की शूटिंग महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हो रही थी। शूटिंग के दौरान सेट पर बहुत सारे चीते बुलाये गए थे। अब तो खैर जानवरों को नहीं लिया जाता है, लेकिन तब ओरिजिनल जानवरों को लेकर शूट किया जाता था। हालांकि ट्रेनर सेट पर मौजूद था लेकिन उनका ध्यान चीते से हटा और चीता हो गया। बेकाबू और एक क्रू मेंबर पर वो झपट पड़ा। देखते ही दुर्गा ने बिना अपनी जान की परवाह किए सीधे चीते पर झपट पड़ी।

वो और उस पर काबू भी पाया। दुर्गा का साहस देख कर सेट पर हर कोई उनकी वाहवाही कर रहा था। अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने क्रू के मेंबर के लिए ऐसा किया। दोस्तों फ़िल्म माया मचंद्र दुर्गा कोटे की दूसरी फ़िल्म थी जिसे वि शांताराम ने डायरेक्ट किया था।

दुर्गा कैसे बनी फिल्मो की स्टार:

दुर्गा खोटे
दुर्गा खोटे

अब हम आपको बताते हैं कि कैसे मराठी सिनेमा की पहली बोलती फ़िल्म में काम करके दुर्गा बन गई थी स्टार फ़िल्म फरेबी जाल और माया मच्छीन्द्र के बाद आखिरकार दुर्गा कोटे को वो काम मिला जिसका उन्हें बेसब्री से इंतजार था और वो फ़िल्म थी जो आई थी 1932 में प्रभात फ़िल्म कंपनी की ही अयोध्या चार राज्य जिसमें वो बतौर और हीरोइन बनकर नजर आई। ये मराठी सिनेमा की पहली बोलती फ़िल्म थी। फ़िल्म मराठी और हिंदी दोनों में बनाई गई थी, जिससे ये भारत की पहली दो भाषाओं में बनने वाली फ़िल्म थी। ये फ़िल्म दुर्गा खोटे और भारतीय सिनेमा के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुई।

जी हाँ, ब्राह्मण रही इस परिवार से तालुक रखने वाली दुर्गा के बाद ही अप्पर क्लास की महिलाओं भी भारतीय सिनेमा की तरफ आने लगी थी। उनके लिए रास्ते खुल गए थे। दोस्तों दुर्गा खोटे को फिल्मों में लाने का सारा क्रेडिट प्रभात फ़िल्म कंपनी को ही दिया जाता है। सिनेमा के शुरुआती दौर में सभी कलाकारों को कांट्रॅक्ट के तहत प्रोडक्शन कंपनी से जोड़ा जाता था। उन्हें जोड़ के रखा जाता था।

प्रोडक्शन कंपनियां कलाकारों से कुछ निर्धारित सालों का कांट्रॅक्ट साइन करती थी कि जब तक आपसे हमारा एक कांट्रॅक्ट है तब तक आप किसी और फ़िल्म कंपनी में काम नहीं करेंगे और उनकी एक तनख्वाह बांध दी जाती थी। वो सैलरी पे काम करते थे लेकिन देखिए दुर्गा खोटे ने ये ट्रेंड तोड़ दिया। प्रभात कंपनी के साथ मंथ्ली सैलरी पर काम करते हुए उन्होंने स्पेशल कांट्रॅक्ट के तहत न्यू थिएटर कंपनी, ईस्ट इंडिया कंपनी और प्रकाश पिक्चर्स के साथ भी काम किया। ऐसे में वो इंडियन सिनेमा की पहली फ्रीलॉन्स एक्ट्रेस बनी।

दोस्तों दुर्गा खोटे क्लासिकल सिनेमा की एकलौती ऐसी एक्ट्रेस है जो मेर्सिडीस बेंज कार के अड्वर्टाइज़िंग में नजर आई है। जी एक फ़िल्म आई थी अमर ज्योति 1936 में चौधरी डाकू सौदा मनी का उन्होंने बेहतरीन किरदार निभाया था। ये पहली भारतीय फ़िल्म है जिसका प्रीमियर वेनिस फ़िल्म फेस्टिवल में हुआ था। जी हाँ, इटली में। दोस्तों, इसके बाद दुर्गा 1937 के फ़िल्म साथ ही प्रोड्यूस की और डायरेक्ट भी की। एक साथ ये दो काम करने वाली वो पहली एक्ट्रेस बनी।

दुर्गा के बेटे का हुआ निधन और ख्वाहिशें कई भी अधूरी रह गई:

दोस्तों दुर्गा जी का बेटा हरिन महेश 40 साल का था जब उसका अचानक निधन हो गया। बेटे की मौत का सदमा दुर्गा खोटे के लिए छक जोड़ देने वाला था। उन्होंने अपने बेटे की मौत के बाद फिल्मों से ब्रेक ले लिया था। हरिन अपने पीछे एक विधवा विजय और दो छोटे बच्चे छोड़ गए थे। दुर्गा ने खुद उनकी जिम्मेवारी उठाई और कुछ समय बाद उन्होंने विजय की दूसरी शादी भी कराई। अब वो मराठी फिल्मों की एक्ट्रेस है। बढ़ती उम्र और ढलते शरीर के साथ दुर्गा ने कुछ समय बाद बतौर कैरेक्टर आर्टिस्ट काम करना शुरू कर दिया था।

फ़िल्म मुगले आजम में चौथा बाई का जो किरदार उन्होंने निभाया है और बॉबी में डिंपल की दादी का रोल अभिमान में छोटी आंटी का रोल हो या फिर विदाई में माँ का रोल हो, इन सभी फिल्मों में दुर्गा खोटे ने अपने अभिनय की वो छाप छोड़ी है जैसे लोग कभी भूल नहीं सकते। करीब 200 फिल्मों का हिस्सा रहे दुर्गा खोटे 1980 के दशक में उन्होंने प्रोडक्शन में भी काम किया और कई बेहतरीन शार्ट फिल्मों और उन्होंने डॉक्यूमेंट्रीज भी बनाई है। दूरदर्शन के मशहूर शो वागले की दुनिया जो बहुत फेमस हुआ था वो दुर्गा खोटे ने ही प्रोड्यूस किया था।

1954 जिसमें सुरैया भी थी उनके साथ भी दुर्गा कोटे ने काम किया है। दोस्तों दुर्गा जी की बहुत सारी ख्वाहिशें थी, जो जिंदगी में अधूरी रह गई। जिंदगी के आखिरी दौर में दुर्गा खोटे ने मराठी भाषा में अपनी आत्मकथा एक आत्मकथा लिखी थी, जिसका नाम था मी दुर्गा खोटे। कुछ सालो बाद इसमें आई दुर्गा खोटे नाम से ट्रांसलेट भी किया गया था। अंग्रेजी में अपनी बायोग्राफी में दुर्गा ने अपनी बहुत सारी इच्छाओं का जिक्र किया था।

एक हिस्से में उन्होंने लिखा था, मेरे मिशन तो बहुत सारे है लेकिन ताकत नहीं बची है। अब मेरी उम्र 85 साल की हो चुकी है और अब कुछ करने की हिम्मत भी नहीं रहेंगी। ख्वाहिशें तो बहुत हैं। हर वक्त जहन में कल्पनाएं आती हैं लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकती।

दुर्गा खोटा को कई सारे अवार्ड्स भी मिले और औरतो के लिए प्रेरणा दायक बनी:

दुर्गा खोटे

दोस्तों बायोग्राफी लिखने के बाद दुर्गा कोटे मुंबई के करीब बहुत पास ही एक जगह अलीबाग वहाँ रहने चली गई थी। अगले ही साल 22 सितंबर 1991 को दुर्गा 86 साल की उम्र की थी जब वो उनका निधन हो गया। फ़िल्म मुगले आजम में दुर्गा खोटे ने सलीम उर्फ दिलीप कुमार की माँ का जो रोल प्ले किया था। वो लोग कभी भूल नहीं सकते हैं। और दादा साहब फाल्के अवार्ड जीतने वाली वो चौथी महिला थी। भारतीय सिनेमा में 50 सालों तक दिए गए दुर्गा खोटे के योगदान के लिए उन्हें बहुत सारे अवार्ड मिले हैं। बहुत सारे सम्मान दिए गए हैं।

1942/43 में उन्हें फ़िल्म चढ़नों की दासी और भरत मलाप के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का बंगाली फ़िल्म जर्नलिस्ट असोसिएशन अवार्ड दिया गया था। इसके बाद उन्हें 1958 में संगीत नाट्य अकादमी अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। 1968 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। और वही फ़िल्म विदाई के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिला था और 1983 में उन्हें दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया।

वो ये सम्मान करने वाली चौथी भारतीय महिला बनी दो तो भारतीय सिनेमा का हिस्सा उनकी तीन पीडिया रही है। दुर्गा ना सिर्फ महिलाओं के लिए सिनेमा में जगह बनाई बल्कि वो अपने बहुत सारे रिश्तेदारों के लिए भी प्रेरणा बन गई। उनके दिवंगत बेटे विश्वनाथ खोटे के भाई नंदू खोटे भी साइलेंट फिल्मों के एक्ट्रेस रहे थे। नंदू के बेटे बीजू खोटे और बेटी शुभा खोटे भी इंडियन सिनेमा का जानामाना नाम है। विजू खोटे ने फ़िल्म शोले में कालिया का कैरेक्टर निभाया था, जो यादगार है। 1955 की फ़िल्म सीमा से फिल्मों में जगह बनाई थी।

वही शुभा खोटे की बेटी भावना बलसावर भी मशहूर टी वि आपने देखा हुआ टी वि शोज था देख भाई देख जुबान संभाल कर उसमें भी उन्होंने काम किया था। दुर्गा खोटे की भतीजी शुभा खोटे और बेटी भावना के साथ है। आज भी जब कभी इंडियन सिनेमा के इतिहास की सबसे मशहूर माँ का जिक्र होगा तो दुर्गा खोटे का नाम उसमें जरूर शामिल किया जाएगा।

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