माला सिन्हा: दोस्तों, आज हम एक ऐसी हीरोइन की बात आपसे कर रहे हैं जिन्होंने ढेर सारी फिल्मों में काम किया है और आपने इन्हें अलग अलग रूपों में फिल्मों में देखा है। इन्होंने बहुत बड़े बड़े ऐक्टर्स के साथ काम किया। और इनके साथ सक्सेसफुल फिल्मों का ताता लगा हुआ है। इनका एक बहुत बड़ी नामी गिरामी हस्ती से झगड़ा भी हुआ था सेट पर बात मार पिटाई पर उतर आई थी और आप हैरत में पड़ जाएंगे की खूबसूरती की मिसाल माने जाने वाली ये एक्ट्रेस जिनको लोग नर्गिस की रेप्लिका कहते थे।
एक जमाने में जब ये फिल्मों में स्ट्रगल कर रही थी तो एक डाइरेक्टर ने कहा था कि आपकी शक्ल ऐसी है ही नहीं कि आप हीरोइन बन पाए। दिल दुखाने वाली बात चौंकाने वाली बात ये है की इनके ऊपर वेश्याव्रति का आरोप लगा था। जी हाँ, घिनौना आरोप।और आप इस बात पर भी यकीन नहीं करेंगे के इस एक्ट्रेस ने भरी अदालत में लिख कर दे दिया था की वो जिस्म बेच कर पैसा कमाते हैं। जी हाँ, जिस्मफरोशी करती हैं।
कौन थी ये अदाकारा और क्या था इनका वेश्यावृति कनेक्शन? मतलब इन्होंने क्यों ऐसी बात कही की वो वेश्यावृत्ति करती हैं और किन किन विवादों में उनका नाम आया और कैसा रहा उनका फिल्मी सफर और क्यों उन्हें एक ही व्यक्ति से करनी पड़ी 3 बार शादी जी हाँ, तीन बार शादी और कहा और कैसे वो गुजार रही है अब अपनी जिंदगी जानेंगे सब कुछ इनके बारे में बस आप बने रही है हमारे साथ ।
Mala Sinha | Details |
---|---|
Born: | 11 November 1936 (age 87 years), Kolkata |
Spouse: | Chidambar Prasad Lohani (m. 1968) |
Children: | Pratibha Sinha |
Parents: | Albert Sinha |
माला सिन्हा की शरुआती जिंदगी:
आज हम चर्चा कर रहे है एक ऐसी मॉडर्न ईसाई परिवार की कॉन्वेंट एजुकेटेड लड़की की, जो देश भर में अपनी घरेलू छवि और शास्त्र नृत्य के लिए पहचानी जाती थी और उनका नाम है माला सिन्हा। उनका जन्म 11 नवंबर 1936 को कोलकाता में ईसाई और नेपाली माता पिता के घर पर हुआ था। उनके पिता का नाम अल्बर्ट सिन्हा था। इनकी माँ नेपाली महिला थी। दोस्तों इनकी माता पिता नेपाल के पहाड़ी इलाके से निकल कर भारत के पश्चिम बंगाल के शहर कोलकाता में आकर रहने लगे। उनके बचपन का नाम आल्डा था। स्कूल में बच्चे उन्हें डाल डा कह कर चिढ़ाते थे।
जी हाँ, आल्डा का मतलब डालडा जो उस दौर में एक वनस्पति घी था और एक अच्छा खासा ब्रांड था। आज भी लोग डालडा को जानते है इसलिए उन्होंने बाल कलाकार के रूप में अपना पहला काम मिलने पर अपना नाम बदल कर बेबी नजमा रख लिया बेबी नजमा को बचपन से एक गायकी और अक्टिंग का बहुत शौक था। आल्डा जब बड़ी हुई तो उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के कोलकाता केंद्र से गायिका के रूप में गाना गाना शुरू किया। उन्होंने बेंगाली फिल्मों में एस ए चाइल्ड आर्टिस्ट भी काम किया है। अपना करियर उन्होंने एस ए चाइल्ड आर्टिस्ट ही शुरू किया था।
उसके बाद उन्होंने साल 1950 में आई बंगाली फ़िल्म जय वैष्णो देवी और श्री कृष्ण लीला में भी काम किया। उस जमाने में एक प्रसिद्ध बंगाली निर्देशक होते थे। उनका नाम था असेंदु बोस उन्होंने उन्हें एक स्कूली नाटक में अभिनय करते हुए देखा। उनकी अभिनय क्षमता से वो बहुत इम्प्रेसिव है और उन्होंने उनके माता पिता से 1950 में अपनी बेंगोली फ़िल्म रोशनाराम में नायिका के रूप में काम करने के लिए पूछा और उनसे इस बात की अनुमति दी।
उनके माता पिता ने उन्हें इस बात की इजाजत दे दी। इस तरह महज 16 साल की उम्र में ही उन्हें बंगाली फ़िल्म में हीरोइन का दर्जा मिल गया और अभी भी उनका नाम नजमा ही था वही चल रहा था।
कैसे हुई फिल्मो की शुरुआत:
कोलकाता में कुछ फिल्मों में अभिनय करने के बाद एक बंगाली फ़िल्म की शूटिंग के लिए वो बम्बई चली आए और जब वो मुंबई आई तो बम्बई ने उनका हाथ पकड़ा, जो बम्बई आए, जिसकी किस्मत खुले तो खुल जाती है। यहाँ उनकी मुलाकात हुई फेमस अभिनेत्री गीता बाली से, जो उनसे मिलकर उनकी सुंदरता पर मंत्रमुग्ध हो गई थी। गीता बाली ने ही उन्हें हिंदी फिल्मों के कई प्रोड्यूसर डाइरेक्टर से मिलवाया और बाद के सालों में उनकी मेंटोर भी बनी।
वो साल 1953 में उनकी दो फिल्मों आई दोस्तों, जिनमें बंगाली फ़िल्म निर्देशक पिनाकी भूषण मुखर्जी की फ़िल्म जोगवियक और सोहरा, मोदी की फ़िल्म झांसी की रानी शामिल थी। लेकिन बदकिस्मती से ये दोनों फिल्मों खास नहीं चली और इसके बाद उनके अब तक किए गए फिल्मों में अभिनय को लोगों ने पसंद भी किया था। हालांकि फ़िल्म इंडस्ट्री में सभी उनकी सुंदरता के इतने कायल नहीं थे।
मतलब ऐसा कुछ बहुत ज्यादा वो नहीं था कि देखते ही पागल हो रहे थे। कहा जाता है कि एक फ़िल्म निर्देशक ने उन्हें देखकर यहाँ तक कह दिया था कि कभी शीशे में अपना चेहरा तो देखो, बढ़िया ही फिल्मों में काम करने वाली कभी शकल देखी है तुमने अपनी कभी आईने में ये लंबी सी नाक लेकर आ गई फिल्मों में काम करने के लिए। हालांकि बाद में कुछ फ़िल्म जानकार इसी चेहरे की तुलना किस्से करने लगे। पता है नरगिस से जी हाँ, जीसको बला के खूबसूरत माना जाता था। इसके बाद साल 1952 में इनकी बतौर एक्ट्रेस कई फिल्मों रिलीज़ हुई जैसे विलियम शेक्सपियर की कहानी पे आधारित फ़िल्म हैमलेट।
जिसे किशोर साहू ने प्रदीप कुमार के साथ बनाया था और ये फ़िल्म भी इत्तफाक से फ्लॉप रही। वैसे इसी साल इनकी प्रदीप कुमार के साथ फ़िल्म बादशाह और गुरु दत्त और गीता बाली के फ़िल्म सुहागन और बंगाली फ़िल्म निर्देशक पिनाकी भूषण मुखर्जी की फ़िल्म धुली भी रिलीज़ हुई। ये सब फिल्मों ज्यादा तो नहीं चल पाई मगर माला सिन्हा को लोग एक कलाकार के रूप में जानने लगे थे पहचानने लगे थे। फ़िल्म धुली तक इनका नाम नजमा ही रहा। और फिर उसके बाद साल 1954 में आए फ़िल्म एकादशी जो एक पौराणिक कहानी पर आधारित फ़िल्म थी।
इस फ़िल्म में ये लीड रोल में नजर आई और इसके साथ त्रिलोक कपूर ने भी अभिनय किया था। कहते हैं हिंदू भावनाओं का ख्याल रखते हुए निर्देशक दादा गुंजाल और त्रिलोकपुरी की सलाह पर उन्होंने अपना नाम माला रख लिया और इसके साथ ही उन्हें हिंदी और बंगाल की कई फिल्मों मिलने लगी थी। जात पात का बहुत फर्क पड़ता है। फिर 1955 में आई फ़िल्म रियासत, फिर केदार शर्मा की फ़िल्म जलदीप और रंगीन राते। और उसी साल रिलीज़ हुई फ़िल्म एक शोला और पैसा ही पैसा। बंगाली फ़िल्म पुत्रवधू में उत्तम कुमार के साथ वह प्रदीप कुमार के साथ उन्होंने फ़िल्म एक शोला में काम किया।
ये सब फिल्मों भी कुछ खास नहीं चल पाई थी। जब माला सिन्हा को इतनी फिल्मों करने के बाद भी कुछ खास सफलता नहीं मिल पा रही थी तो ऐसे में उन्हें सहारा मिला। हिंदी फिल्मों के लेजेंडरी ऐक्टर और निर्देशक गुरु दत्त का। गुरुदत्त ने उन्हें हिंदी फिल्मों में स्थापित करने के लिए बहुत मदद की और उसी साल 1957 में रिलीज़ फ़िल्म प्यासा में माला सिन्हा के अभिनय को लोगों ने बहुत पसंद किया। आज भी लोग उस फ़िल्म को बार बार देखते हैं। इस फ़िल्म में गुरु दत्त के साथ वहीदा रहमान ने भी काम किया था। फ़िल्म सुपर डुपर हिट फ़िल्म रही।
इसी साल उनकी और भी कई फिल्मों आई, जिनमें बंगाली फिल्मों पृथ्वी, हमारे चाय व सुरेश पारस हैं। हिंदी फ़िल्म में फॅशन, अपराधी कौन लाल बत्ती, भक्त ध्रुव, नौ शेरवान, आदिल और नया ज़माना ऐसी कई फिल्मों थी। ये जितनी भी फिल्मों थी, लगभग ये सारी फिल्मों ए ग्रेट फिल्मों रही है और इनमे उनके साथ प्रदीप कुमार, बलराज, सनी, अभी भट्टाचार्य, सौरव मोदी और राज़ कुमार जैसे बड़े कलाकारों ने काम किया था।
माला सिन्हा फिल्मो में मिली सफलता:
इसके बाद दोस्तों उन्होंने एक बहुत ही फेमस फ़िल्म में काम किया था। 1958 में आई थी ये फ़िल्म जिसका नाम था परवरिश। राज़ कपूर की ये फ़िल्म थी। इसका एक गाना बहुत हिट हुआ था जिसके बोल थे मस्ती भरा है समां।राज़ कपूर और माला सिन्हा पर फ़िल्माया गया ये सॉन्ग अपने दौर में सुपर हिट रहा था। राज़ कपूर के साथ ही उनकी दूसरी फ़िल्म फिर सुबह होगी भी आई बलराज सानी के साथ फ़िल्म देवर भाभी साल 1959 में फिर राज़ कपूर के साथ फ़िल्म में नशे में हूँ और देव आनंद के साथ लव मैरिज जैसी बड़ी फिल्मों में उन्हें काम करने का मौका मिला।
लव मैरिज का ये गाना बड़ा लोकप्रिय हुआ जिसे लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने गाया था। इस गाने को देवानंद और माला सिन्हा पर पिक्चर्स किया गया था। बहुत खूबसूरत गाना है। और इसी साल माला सिन्हा की दूसरी फ़िल्म राजेंद्र कुमार के साथ थी, जिसका नाम था धूल का फूल। ये फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अवार्ड का नॉमिनेशन भी मिला था और इसी फ़िल्म से यश चोपड़ा ने अपने निर्देशक के रूप में करियर की शुरुआत की। थी। इसी फ़िल्म में गायन प्रतियोगिता के रूप में फ़िल्माया गया ये गीत महेंद्र कपूर, राजेंद्र कुमार और लता मंगेशकर की आवाज में था।
संगीत एन दत्ता का था और लिखा था साहिर लुधियानवी ने। इस फ़िल्म के बाद माला सिन्हा इंडस्ट्री में टॉप की हीरोइनों में शामिल हो गई। उसी साल उनकी अन्य फिल्मों दुनिया ना माने और जालसाज़ भी रिलीज़ हुई और दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई है फ़िल्म। उसके बाद 1960 में किशोर कुमार के साथ फ़िल्म बेवकूफ साल 1961 में देवानंद के साथ फ़िल्म माया उनकी प्रमुख फिल्मों रही, जिसके जरिए माला सेना हिंदी दशकों के घर घर में पहुँच गई। हर कोई उन्हें जानने लगा। दोस्तों अगर 1962 को बाला सिन्हा का साल कहा जाए तो इसमें कोई कॅन्फ़्यूज़न अतिशोकती नहीं होगी।
इसी साल उनकी फ़िल्म रिलीज़ हुई। मनोज कुमार के साथ हरियाली और रास्ता इस फ़िल्म ने उनके करियर को सात वे आसमान पर पहुंचा दिया। निर्देशक विजय भट्ट की फ़िल्म माला सिन्हा के साथ साथ राज़ कपूर के करियर के लिए भी बहुत इम्पोर्टेन्ट रही। 1962 में ही माला सिन्हा की शम्मी कपूर के साथ फ़िल्म दिल तेरा दीवाना धर्मेंद्र के साथ फ़िल्म अनपढ़ाई जिसके गाने बहुत के साथ फ़िल्म बॉम्बे का चोर एक सफल कॉमेडी फ़िल्म रही। दोस्तों वो माला सिन्हा कितनी भी बड़ी ऐक्टर बन गई हो। वो अपने पिता से बहुत डरती थी। घर आते हुए वो बेहद सादगी से रहती थी।
उनकी माँ उन्हें घरेलू लड़की ही मानती थी। जो स्टार्स स्टेटस घर के बाहर छोड़ कर आती थी, रसोई घर में जाकर खाना बनाती थी और फिर प्रेम से मेहमानों को खाना खिलाना, ये माला सिन्हा के प्रिय शौक रहे हैं। इसी को संस्कार कहते हैं जो माता पिता अपने बच्चों को देते हैं। माला सिन्हा ने साल 1950 से 1970 के दशक में लगातार बहुत सारी बंगाली फिल्मों में भी प्रमुख भूमिका निभाई। बॉलीवुड में साल 1963 की उनके फिल्मों में फूल बने अंगारे, गहरा दाग और गुमराह ने दशकों के बीच बहुत लोकप्रियता भटोरी थी।
वो तो माला सिन्हा अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन साल 1964 की फ़िल्म बहु रानी को मानती हैं, जिसमे वो गुरु दत्त के साथ नजर आई थी। इस फ़िल्म के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फ़िल्मफेयर नॉमिनेशन भी मिला था। उसके बाद वो मनोज कुमार के साथ पर्दे पर उतरी। उसी साल माला सिन्हा की जहाँ आरा में भारत भूषण के साथ वो बेहद सशक्त रोल में नजर आई। इस फ़िल्म के लिए उन्हें बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट असोसिएशन ने उस साल के बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड भी दिया था।जबकि फ़िल्म फेयर में भी इसी कैटेगरी का नॉमिनेशन उन्हें मिला था।
साल 1965 में उनकी फ़िल्म आई हिमालय की गोद में जो सुपर डुपर हिट फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के गाने भी बहुत खूबसूरत गाने हैं। इस फ़िल्म के लिए भी उन्हें बेस्ट ऐक्टर्स के फ़िल्मफेयर अवार्ड का नॉमिनेशन प्राप्त हुआ था। फिर से नॉमिनेशन हालांकि ये माला सिन्हा के करियर के विडंबना ही मानी जाएगी कि चार बार। नॉमिनेशन होने के बावजूद माला सिन्हा कभी इस अवार्ड को जीत ही नहीं पाई। बदकिस्मती बाद में उन्हें फ़िल्मफेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। इसका जिक्र आगे करेंगे उस साल की उनकी दूसरी प्रमुख हिंदी फिल्मों नीला आकाश और बहु बेटी रही।
बाद में वो और भी कई बड़ी फिल्मों का हिस्सा बनी जिसमें 1966 की दिल लगी। 1967 की नाइट इन और जाल ये प्रमुख फिल्मों रही। फिर साल 1967 में ही फ़िल्म नई रौशनी में अभिनेता राजकुमार के साथ उनका अभिनय कौशल देखने को मिला लोगों को। और फिर उसी साल उनकी डबल रोल वाली एक फ़िल्म आई, जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया। फ़िल्म का नाम था जब याद किसी की आती है। दोस्तों धर्मेंद्र और अभी भट्टाचार्य अभिनीत इस फ़िल्म में कई मनमोहन गीत थे, जिन्हें मदन मोहन और राजा मेहंदी अली खान ने संगीतबद्ध किया था। फिर 1968 में आई आंखें फ़िल्म।
ये खास फ़िल्म रही जिसमे धर्मेंद्र भी थे। ये एक डिटेक्टिव फ़िल्म थी जिसमे धर्मेंद्र के ऑपोजिट मीनाक्षी मेहता के किरदार में माला सिन्हा ने बहुत ही बेहतरीन काम किया है। वो बहुत जचे है इस रोल में। साल 1968 में माला सिन्हा की अन्य हिंदी फिल्मों में दो कलियां। हम साया और मेरे हजूर शामिल रही। उसके बाद साल 1969 में ऋषिकेश मुखर्जी की बहु चर्चित फ़िल्म प्यार का सपना में उनका अभिनय बहुत ही चुनौती भरा रहा था । एक गांव की अनपढ़ लड़की के महानगर की युवती में ट्रांसफर्मेशन को माला सिन्हा ने जीतने परफेक्ट तरीके से निभाया है। वो वाकई बहुत ही काबिलियत है।
वही दोस्तों आगे चल के माला सिन्हा ने थोड़ा सा अपने भूमिका में बदलाव करना शुरू कर दिया। पहले की तरह वो टाइम दो रहा नहीं था जब हर साल उन्हें सात आठ पिक्चर एक साथ मिल जाती थी। उन्होंने अब स्ट्रांग कैरेक्टर रोल अपनानी शुरू कर दी है।
वो स्क्रिप्ट पढ़ती थी, चूस करती थी, टाइम लेती थी और उसके बाद ही किसी फ़िल्म की कहानी पर हाँ बोलती थी जब उन्हें अपना रोल बहुत चैलेंजिंग रखता था और हर फ़िल्म स्वीकार करना भी उन्होंने बंद कर दिया था। साल 1974 की फ़िल्म 36 घंटे इसका एक सीधा साधा सशक्त एग्ज़ैम्पल है आपके सामने, जिसमें उनका दीपा रॉय का रोल लीक से काफी हर्ट कर रहा था, बहुत बढ़िया काम किया था उन्होंने। फिर इसी साल 1976 में रिलीज़ फ़िल्म ज़िन्दगी साल 1978 में आई फ़िल्म करम योगी और 1980 में प्रस्तुत फ़िल्म बेरहम में उनका किरदार देखते ही बनता है।
उसके बाद के सालों में अगर हम बात करें 1981 की फ़िल्म हरजाई ये रिश्ता ना टूटे। साल 1985 में रिलीज़ फ़िल्म बाबू और साल 1992 में फ़िल्म खेल में उनके कैरेक्टर रोल को भी बहुत ही लोकप्रियता मिली थी।
माला सिन्हा को कई अवार्ड्स मिले और क्यों की उनके ही पति के साथ 3 बार शादी:
दोस्तों माला सिन्हा इतनी लोकप्रिय हुई थी कि साल 1990 में माधुरी दीक्षित को प्रचारित किया गया। और ये कहा गया की वो नई माला सिन्हा है। हालांकि कुछ सालो बाद माला सिन्हा ने खुद को फिल्मों से पूरी तरह से दूर कर लिया था। उनकी आखरी फ़िल्म जिद आई थी जो साल 1994 में रिलीज़ हुई थी। फिर उसके बाद फाइनली उन्हें साल 2007 में स्टार स्क्रीन लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया। उसके बाद साल 2018 में उनको फ़िल्म फेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।
इनके अलावा 2004 में उन्हें सिक्किम सरकार द्वारा सिक्किम सम्मान और 2021 में दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 1966 में माला सिन्हा नामक एक नेपाली फ़िल्म में अभिनय करने के लिए नेपाल गई थी। तब पहली फ़िल्म उद्योग अपनी प्रारंभिक अवस्था में था, स्टार्ट हो रहा था। ये उनके करियर की एक मात्र नेपाली फ़िल्म थी। इसके लिए उन्हें नेपाल सरकार ने साल 2005 में नेशनल फ़िल्म क्रिटिक्स अवार्ड और साल 2017 में एल जी फ़िल्म अवार्ड से भी सम्मानित किया। लेकिन इसका वास्तविक पुरस्कार उन्हें साल 1966 में ही मिल गया था।
जीवनसाथी के तौर पर फ़िल्म के नायक थे चिदंबरम प्रसाद लोहानी जो इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान ही माला सिन्हा से प्यार करने लगे थे। 16 मार्च 1966 को दोनों ने शादी कर ली। फिल्मों में अभिनय जारी रखने की शर्त पर शादी तीन बार अलग अलग रीती रिवाजों के जरिए पूरी हुई। पहले उन्होंने कोर्ट मैरिज की फिर क्रिश्चियन पद्धति में चर्च में जाकर शादी की क्योंकि इनके पिता ईसाई थे।
इसके कुछ ही दिनों बाद दोनों ने हिन्दू रीती रिवाज से शादी की फेरे लिए और पति पत्नी बन गए और ये उन्हें इसलिए करना पड़ा क्योंकि उनके जो पति थे। चिदंबरम प्रसाद लोहानी नेपाली हिंदू थे। लोहानी का नेपाल में ही रियल स्टेट से जुड़ा बिज़नेस था।
माला सिन्हा क्यों आई विवादों में और क्यों उन पर लगा घिनौना आरोप :
अगर उनसे जुड़ी कुछ विवादों की बात करें तो कहा जाता है साल 1968 में फ़िल्म हम साया के सेट पर माला सिन्हा और उनकी सह अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के वेद किसी बात पर लड़ाई हो गई। लड़ाई के दौरान शर्मिला टैगोर ने माला सिन्हा को थप्पड़ मार दिया था। हालांकि लड़ाई का कारण कोई पुख्ता जानकारी तो मिलती नहीं है कि क्यों उनकी लड़ाई हुई थी। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो माला सिन्हा को दादा साहब फाल्के, लेजेंडरी आर्टिस्ट रेडमी अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन उन्होंने पुरस्कार समारोह में शामिल होने से इंकार कर दिया।
कारण पता करने पर मालूम पड़ा कि उनका नाम अन्य पुरस्कार विजेताओं के साथ निमंत्रण कार्ड पर भी नहीं लिखा था। दोस्तों उन्होंने हमेशा उन भूमिका का चयन किया जो सबसे अलग होती थी और अधिकतर जिनको उस दौर की अभिनेत्री या करने से मना कर देती थी। माला सिन्हा को हॉलीवुड फिल्मों भी ऑफर की गई, लेकिन उनके पिता जो उनका फिल्मों का काम देखा करते थे, उन्होंने हॉलीवुड फिल्मों में अंतरंगता मतलब न्यूडिटी जो होती थी, जो बहुत बोल्डनेस थी।
उसके वजह से उन्होंने आपत्ति जताई और प्रस्तावकों को ठुकरा दिया। दोस्तों माला सिन्हा के बारे में एक किस्सा बहुत मशहूर है। उन्होंने अदालत में अपने जिस्म का सौदा करने की बात कही थी। दरअसल एक बार उनके यहाँ इन्कम टैक्स की रेड पड़ी और उस रेड में ₹12,00,000 बरामद हुए कैश जो उनके पिता ने घर के बाथरूम में छुपा रखे थे। उन पैसों के बारे में जब अदालत में पूछा गया तो उसको बचाने के लिए माला सिन्हा ने ये कह कर सबको चौंका दिया। उन्होंने ये पैसा गलत धंधे से कमाया है। दोस्तों माला सिन्हा की एक बेटी है, जिसका नाम है प्रतिभा सिन्हा।
उन्होंने भी फिल्मों में अपना करियर बनाने की कोशिश की थी, लेकिन दुर्भाग्य से उनकी फिल्मों चल नहीं पाई और उन्होंने भी जल्दी फिल्मों से किनारा कर लिया और नदीम श्रवण में से नदीम से उन्होंने शादी की।
तो दोस्तों कैसी लगी आपको ये जानकारी हमें कमेंट बॉक्स में शेयर करके जरूर बताएगा। धन्यवाद.