नलिनी जयवंत: साधारण कद काठी, लेकिन मैं नक्ष, तीखे और चेहरे पर गजब की सुंदरता। और अदाएं ऐसी की करोड़ों दर्शक जान तक लुटाने को तैयार रहते थे। पहली फ़िल्म से ही स्टार बन गई और उनकी मौजूदगी फ़िल्म के हिट होने की गैरॅन्टी मानी जाती थी। लेकिन क्या आप जानते हैं की इस अदाकारा को फ़िल्म इंडस्ट्री में गायिका के तौर पर एंट्री मिली थी और उनके गाये गीत खासे लोकप्रिय भी हुए। आप यकीन कर सकते हैं किन मशहूर फ़िल्म स्टार का पूरा परिवार फिल्मों से जुड़ा रहा, लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव में वह बिल्कुल अकेली रह गई और उनकी मौत का रहस्य बरसों बाद सुलझ पाया।
क्या आप सोच सकते हैं कि इस अदाकारा पर एक मशहूर निर्देशक और दो मशहूर अभिनेता से रोमांस करने की चर्चाएं हुई और उनमें से दो के साथ उन्होंने ब्याह भी रचाया था? कौन थी वो अदाकारा और क्यों उन्हें भरपूर शोहरत, दौलत व मोहब्बत मिलने के बावजूद उम्र भर अकेले पन का दर्द सताता रहा? क्या था उनकी मौत का रहस्य और क्यों बनी रही वह बरसों तक पहेली जायेंगे और फिर बहुत कुछ बस बन रही है हमारे साथ इस ब्लॉग के अंत तक।
तो दोस्तों नमस्कार, आज की इस ब्लॉग में हम चर्चा करेंगे 50 और 60 के दशक की हार्ट थ्रोव मानी जाने वाली और दर्शकों ही नहीं फ़िल्म सितारों के भी दिलों में बसने वाली अदाकारा नलिनी जयवंत की। क्यों उन्हें दो शादी के बावजूद अपने पति के बदले उस दौर के मशहूर फ़िल्म स्टार अशोक कुमार का करीबी माना जाता था। क्या थी उनकी गुमनाम मौत का राज़? और क्या सचमुच उनकी मौत के बाद उनकी लाश तीन दिनों तक उनके बंगले में सड़ती रही? क्यों उनकी सगी रिश्तेदार कही जाने वाली अदाकाराओं काजोल, तनिषा और नूतन व मोहनीश बहल आदि ने अकेला छोड़ दिया।
यह सब कुछ जानने से पहले आइये नजर डालते हैं। नलिनी जयंती के ज़िन्दगी और उनके फिल्मी सफर पर।
जन्म | 18 फ़रवरी 1926 | जीवन साथी |
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स्थान | बम्बई, बम्बई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत | वीरेंद्र देसाई |
मृत | 22 दिसंबर 2010 | |
(आयु 84 वर्ष) | ||
स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र, भारत | |
पेशा | अभिनेत्री |
नलिनी जयवंत की शुरुआती जिंदगी:
नलिनी जयवंत मुंबई के गिरगांव इलाके में जन्मी और पली बढ़ी थी। और उनके पिता दादा साहेब जयवंत कस्टम अधिकारी थे। दो भाइयों के बीच वो अकेली बहन थी। 30 और 40 के दशक के मशहूर अभिनेत्री रतन बाई नलिनी की सगी बुआ थी, जिनकी बेटी शोफना समर्थ ने भी फ़िल्म जगत में खासा नाम करवाया था। नलिनी को बचपन से ही नृत्य संगीत का शौक था और उन्होंने मोहन कल्याणपुर से कथक की शिक्षा भी दी।
इसके बाद ही उन्होंने मीराबाई जवेरी से गायन भी सीखा था। उनके मुताबिक स्वास्थ्य ड्रीमलाइट और इम्पेरिअल सिनेमा हॉल मेरे घर के आसपास ही थे इसलिए मन में फिल्मों के प्रति खिंचाव भी था लेकिन उस जमाने के माहौल को देखते हुए सोच भी नहीं सकती थी कि मैं कभी फिल्मों में काम करूँगी। हालांकि शोभना समर्थ मेरी सगी बुआ की बेटी थी, जो तब तक फिल्मों में अच्छा खासा मुकाम हासिल कर चुकी थी। लेकिन उनसे भी मेरे पिता खुश नहीं थे।
उस जमाने में एक बहुत बड़ा नाम था प्रोड्यूसर चिमन लाल देसाई का, जिन्होंने सागर मूवी टोन नेशनल स्टूडियो और अमर पिक्चर्स के बेनर तले जजमेंट ऑफ़ अल्लाह, मनमोहन, वतन, औरत व निर्दोष जैसी फिल्मों बनाई थी। मोतीलाल, महबूब खान, सितारा देवी, गायक अभिनेता सुरेन्द्र, महान गायक मुकेश आदि कई कलाकारों को लॉन्च करने वाले चिमन लाल देसाई ने पहली बार एक सिनेमा हॉल की दर्शक गैलरी में देखा था। इसका कुछ यूं है की चमन लाल और उनके पुत्र वीरेंद्र देसाई दोनों पिता पुत्र फ़िल्म देखने सिनेमा घर पहुंचे।
शो के दौरान दोनों की नजरें एक लड़की पर पड़ी, जो तमाम भीड़ में भी अपनी दमक बिखेर रही थी। यह नलिनी जयवंत थी। इनकी आयु उस समय मुश्किल से 13 या 14 बरस की ही थी। दोनों पिता पुत्र की जोड़ी ने दिल ही दिल में इस लड़की को अपनी अगली फ़िल्म की हीरोइन चुन लिया और ख्यालों में खो गए। फ़िल्म कब खत्म हो गई? कब वह लड़की अपने परिवार के साथ गायब हो गई? इसकी खबर तक दोनों को ना हुई। 1 दिन वीरेंद्र देसाई अभिनेत्री शोभना समर्थ से मिलने उनके घर पहुंचे तो देखा कि नलिनी वहाँ मौजूद थी।
नलिनी को देखते ही उनकी आँखों में चमक आ गयी और बाछे खिल गयी। इस बार वीरेंद्र देसाई ने बिना देर किये नलिनी के सामने फ़िल्म का प्रस्ताव रख दिया। नलिनी के लिए तो ये मन मांगी मुराद पूरी होने जैसा था। डर था तो सिर्फ पिता का जो फिल्मों के सख्त विरोधी थे लेकिन वीरेंद्र देसाई ने उन्हें मना लिया। नलिनी जयवंत के मुताबिक एक रोज़ शोभना समर्थ के घर नूतन के जन्मदिन के मौके पर उनकी मुलाकात चमन लाल देसाई से हुई। जो उन दिनों नेशनल स्टूडियो के बैनर में फ़िल्म राधिका के तैयारियों में जुटे थे। नलिनी जयवंत की उम्र उस वक्त करीब 14 बरस की थी।
चिमन लाल देसाई ने उन्हें फ़िल्म राधिका की मुख्य भूमिका में लेने की इच्छा जताई, जिसके लिए नलिनी के पिता ने साफ इंकार कर दिया, लेकिन चिमन लाल ने हार नहीं मानी। आखिरकार नलिनी के पिता को चिमन लाल की जिद के आगे झुकना ही पड़ा।
नलिनी जयवंत का पहला प्यार, शादी और संघर्ष:
साल 1941 में रिलीज हुई फ़िल्म राधिका का निर्देशन चिमन लाल देसाई के बेटे वीरेन्द्र देसाई ने किया था। नलिनी जयवंत ने अशोक घोष के संगीत निर्देशन में फ़िल्म राधिका में हरीश, नुर जहाँ और मारुति राव के साथ मिलकर चार डुएट्स व तीन सोलो गीत गाए थे। उनकी शुरुआती पांचवे से तीन फ़िल्म राधिका, बहन और निर्दोष 1941 में आई थी। फ़िल्म बहन में नलिनी ने चार और निर्दोष में छह गाने गाए। 1942 में फ़िल्म आंख मिचौली और 1943 में आदाब अर्ज आई। नलिनी जयवंत ने फ़िल्म आंख मिचौली में और आदाब अर्ज में चार गीत गाए थे।
उन फिल्मों में काम करते करते कब उन्हें प्रोड्यूसर वीरेंद्र देसाई से प्यार हो गया उन्हें पता ही नहीं चला। वीरेंद्र देसाई नलिनी जयवंत से उम्र में बहुत बड़े थे और पहले से शादीशुदा भी थे। लेकिन 1945 में दोनों ने शादी कर ली। हिंदी के मशहूर कहानिकार उपेन्द्र नाथ अश्क अपनी किताब, फिल्मों दुनिया के झलकियों में लिखते हैं की बीवी बच्चों के होते हुए दूसरी शादी कर लेने की वजह से वीरेंद्र देसाई को उनके घर और बिज़नेस से बेदखल कर दिया गया था। ऐसे में उनके पारिवारिक बैनर्स, नेशनल स्टूडियो और अमर पिक्चर्स से पति पत्नी का रिश्ता टूटना भी स्वाभाविक ही था।
मजबूरन वीरेंद्र देसाई और नलिनी को फ़िल्म कंपनी फिल्मीस्तान के साथ कॉन्ट्रैक्ट करना पड़ा और वो फ़िल्मीस्तान स्टूडियो उसके पास ही मलाड में किराये के मकान में रहने लगे। अशोक के मुताबिक उस दौरान फिल्मी स्थान के बैनर में शिकारी, सफर और ऐट डेज़ जैसे फिल्में बनी, जिनमें वीरा, पारो और शोभा आदि को बतौर नायिका लिया गया। लेकिन ना तो नलिनी को अभिनय का मौका दिया गया और ना ही वीरेंद्र देसाई को निर्देशन का।
उन दोनों को बिना काम किए हर महीने ₹2000 बतौर वेतन दिया जा रहा था। अश्क ने लिखा कि उन दोनों को काम ना मिलने की वजह शायद नलिनी की ये शर्त हो रही थी कि वो सिर्फ अपने पति वीरेंद्र देसाई के निर्देशन में काम करेंगी। अश्क यह भी जोड़तें हैं हो सकता है कि फ़िल्म के पर्दे पर नलिनी की सफलता को देखकर मुखर्जी ने फ़िल्मस्तान की पहली फ़िल्म चल चल रे नौजवान की नायिका नसीम का रास्ता साफ करने के लिए 2 साल का अनुबंध करके नलिनी को बिठा दिया हो और यही अंतिम बात मुझे सही लगती है।
अश्क जो उन दिनों वीरेंद्र देसाई के लिए किसी फ़िल्म की कहानी लिख रहे थे, ये भी कहते है। तभी मुझे पता चला की ऊपर से खूब मज़े से रहते दिखाई देने वाले डाइरेक्टर वीरेंद्र देसाई और नलिनी जयवंत अंदर से बहुत परेशान और कुंठित है और इस बीच नलिनी का नाम फिल्मी दर्शक जगत भूल गए। संभवत देसाई के निर्देशन की शर्त रख कर नलिनी ने अपना बहुत अहित किया। उस दौरान उनके सिर्फ एक फ़िल्म विनर पिक्चर की ‘फिर भी अपना है’ प्रदर्शित हुई थी जो बहुत लम्बे समय से बन रही थी और वर्ष 1946 में रिलीज़ हुई नलिनी जयवंत के मुताबिक महज 3 साल के अंदर नलिनी की साल 1948 में उनकी शादी टूट गई।
जयवंत की शादी टूटी और किस्मत बदली:
फ़िल्मीस्तान का कांट्रॅक्ट खत्म होने और वीरेंद्र देसाई से अलग होने के बाद उनके करियर ने एक बार फिर से रफ्तार पकड़ी। वर्ष 1948 में दिलीप कुमार के साथ उनके फ़िल्म ‘अनोखा प्यार’ रिलीज़ हुई जो खासी लोकप्रिय रही। उसी साल त्रिलोक कपूर के साथ उनकी फ़िल्म गुंजन ने भी ठीक ठाक कारोबार कीया। फिल्म गुंजन का निर्माण नलिनी प्रोडक्शन के बैनर में हुआ था। इसका निर्देशन वीरेंद्र देसाई ने किया था। नलिनी फिर से दर्शकों के दिलों दिमाग पर राज़ करने लगी।
अगले साल यानी वर्ष 1949 में भारत भूषण के साथ उनकी फ़िल्म चकोरी आई, जिसमें कहानी हीरोइन के ही इर्द गिर्द लिखी गई थी। वर्ष 1950 में नलिनी की एक के बाद एक तीन फिल्मों आई और सभी बड़े बैनरों व ए ग्रेड के सितारों से सजी थी। शेखर और भारत भूषण के साथ आँखे, देवानंद के साथ हिंदुस्तान हमारा और किशोर कुमार और सज्जन के साथ मुकद्दर रीलीज हुई। निर्माता निर्देशक देवेंद्र गोयल की फ़िल्म आँखे से ही संगीतकार मदन मोहन ने अपने करियर की शुरुआत की थी। नलिनी जयवंत ने फ़िल्म गुंजन में छह, चकोरी में एक और मुकद्दर में तीन गीत भी गाए थे।
लेकिन ये तमाम फिल्मों कोई खास करीश्मा नहीं दिखा पाई। सही मायनों में नलिनी को स्टार का दर्जा हासिल हुआ। फ़िल्मीस्तान की ही फ़िल्म समाधि से जो साल 1950 में प्रदर्शित हुई थी। उधर उसी साल बॉम्बे टॉकीज़ के बैनर में बनी फ़िल्म संग्राम भी कामयाब रही। इन दोनों ही फिल्मों के हीरो अशोक कुमार और संगीतकार सी राम चंद्र थे। 1950 का दशक नलिनी के लिए बेहद व्यस्तताओ से भरा रहा। साल 1991 से साल 1960 के बीच उनकी कई फिल्मों रिलीज़ हुई जो खासी सफल भी रही।
साल 1956 में उन्हें केंद्र में रख कर कई फिल्मों बनी, जिनमें प्रमुख थी भारती और दुर्गेश नंदनी। इसके अलावा उस साल रिलीज़ हुई नंदिनी जयवंत की फिल्में थी आन बान आवाज़ 50:50, हम सब चोर है, इंसाफ और सुदर्शन चक्र।
नलिनी जयवंत ने दूसरी शादी के बाद फिल्मों से दूरी बना ली:
प्रभुदयाल फ़िल्म मुनीम जी में नलिनी जयवंत के साथ काम कर चूके थे। फ़िल्म ‘अमर रहे ये प्यार’ के दौरान उन दोनों ने शादी कर ली। आगे चल कर प्रभु दयाल ने हम दोनों और दुनिया जैसे फिल्मों में अभिनय के अलावा बतौर सह निर्देशक काम किया। लेकिन नलिनी जयवंत फ़िल्म बॉम्बे रेस्कोर्स के बाद फिल्मी दुनिया से अलग होकर अपने गृहस्थी संभालने में व्यस्त हो गई।
खास बात यह रही कि दोनों ही शादियों के बावजूद नलिनी जयवंत कभी माँ नहीं बन पाई और कहा जाता है कि इस बात का उन्हें जीवन भर मलाल रहा। करीब 18 साल बाद एक बार फिर से वह साल 1983 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म नास्तिक में नायक अमिताभ बच्चन की माँ की भूमिका में नजर आई। यहाँ ध्यान देने वाली बात ये भी है साल 1954 में आई फ़िल्म नास्तिक नाम के फ़िल्म में भी नलिनी ने काम किया था।
उस फ़िल्म में नलिनी लीड रेक्ट्रेस थी, जबकि इस फ़िल्म में नलिनी ने माँ का किरदार निभाया था। अमिताभ बच्चन वाले नास्तिक के बाद नलिनी ने खुद को हमेशा के लिए अक्टिंग से दूर कर लिया। नलिनी ने कहा था,
“वो फ़िल्म मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। मुझे मेरी भूमिका जैसे सुनाई गई थी वैसा फ़िल्म में कुछ भी नहीं था। मैं इस तरह से काम नहीं कर सकती इसलिए मैंने खुद को फिल्मों से पूरी तरह दूर रखना ही बेहतर समझा।”
नलिनी जयवंत ने 25 सालों तक बॉलीवुड पर राज किया:
साल 1983 में बनी फ़िल्म नास्तिक को छोड़ दिया जाए तो साल 1941 से 1965 के 25 सालों के अपने करियर में नलिनी ने 60 फिल्मों में नायिका की भूमिका निभाई। इनमें से साल 1946 में बनी फ़िल्म ‘फिर भी अपना है’ को साल 1991 में ‘भाई का प्यार’ के नाम से दोबारा प्रदर्शित किया गया था। अशोक कुमार और अजित के साथ नलिनी जयवंत की जोड़ी खूब जमी।
इन दोनों ही अभिनेताओ के साथ नलिनी ने 10 : 10 फिल्मों में काम किया। फ़िल्म निर्दोष और नंदकिशोर हिंदी के साथ साथ मराठी भाषा में भी बनी थी, तो नलिनी ने गुजराती फ़िल्म ‘वारस दार’ में भी काम किया, जो वर्ष 1948 में रिलीज़ हुई। इसके अलावा उन्होंने नौ फिल्मों में कुल मिलाकर उनचालीस गीत भी गाए।
नलिनी जयवंत के पति के मृत्यु के बाद उनकी मृत्यु रहस्य बनी हुई है:
साल 2001 में प्रभुदयाल के गुज़रने के बाद नलिनी जयवंत अपने विशाल बंगले में बिल्कुल अकेली रहती थी। पास ही में उनके भाई का बेटा और उसका परिवार रहता था जो नलिनी जी की देखभाल करता था। अभिनेत्री नूतन, उनके बेटे मोहिनी बहल, बहन तनुजा और उनके बेटियां काजोल व तनीषा आदि नलिनी जयवंत की करीबी रिश्तेदार थी, लेकिन उनमें से कोई उनके बुढ़ापे में उनको देखने नहीं गया।
18 फरवरी 1926 को जन्मे नलिनी जयवंत का देहांत करीब 85 साल की उम्र में 22 दिसंबर 2010 को हुआ तो भी बहुत कम फिल्मी सितारे उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए। मृत्यु के बाद होने वाले तमाम पारंपरिक अनुष्ठान उनके भतीजे द्वारा उनके घर से किए गए। नलिनी जी के निधन के फौरन बाद उनके बंगले पर लटके ताले को देखकर मीडिया में खलबली मच गई और बिना सच्चाई जानें। नलिनी के निधन को रहस्यमयी मौत करार दे दिया गया।
मतलब यह कि जो रहस्य था ही नहीं उस पर ही सस्पेंस बना दिया गया और मीडिया की भेड़ चाल में इसे कभी सुधारा भी नहीं गया। क्योंकि उनके यहाँ कोई प्रवक्ता जैसा नहीं था। बहरहाल, इतनी मशहूर अभिनेत्री का यू खामोशी से चले जाना भी बॉलीवुड की उस कड़वी हकीकत को बयां करता है जिसमें कहा जाता है यहाँ सिर्फ चढ़ते सूरज को सलाम किया जाता है।
तो दोस्तों आपको ये वीडियो कैसे लगी? हमें कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं। अगर आपको नलिन जयवंत के जीवन से जुड़ी और कोई बात पता हो तो वह भी हमें अवश्य बताएं। अब दीजिए मुझे इजाजत, नमस्कार।