बरकत राइ मलिक: उनके गीतों में जमाने का दुख दर्द भी था तो दोस्ती व दोस्तों की मौज मस्ती भी थी। एक तरफ जहाँ उनके गीतों में उमंग था वहीं दूसरी तरफ विलह और करुणा की पुकार भी थी। वो ऐसे गीतकार थे जिन्होंने बॉलीवुड में हिंदी भाषा को एक नया आयाम दिया। और संभवत पहला ऐसा गीत लिखा जो शुद्ध हिंदी में था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन अद्भुत पंक्तियों के लेखक को हिंदी लिखने भी नहीं आती थी। क्या आप जानते हैं की ममता और प्रेम रस में सरोबार गीत लिखने वाले यह गीतकार कभी क्रांतिकारी हुआ करते थे और अपने गीतों की वजह से उन्हें जेल तक जाना पड़ा था।
क्या आप यकीन करेंगे कि कई भाषाओं में यादगार और सुपरहिट गीत लिखने वाले इस महान गीतकार के आखिरी पल इतने गुमनामी में गुजरे की जब उनकी मौत हुई तो किसी को कानो कान खबर तक ना हुई? कौन थे वो नगमा निगार जिनके गीतों ने दशकों तक फ़िल्म जगत में तहलका मचाए रखा और उनके दौर के हर मशहूर फिल्मकार व संगीतकार उनसे गीत लिखवाने को लालायित रहते थे। क्यों उनके गीत फ़िल्म के हिट होने की गैरॅन्टी बन जाते थे लेकिन क्यों इस बेदर्द दुनिया ने उन्हें भुला दिया जानेंगे और भी बहुत कुछ बस बने रहे इस ब्लॉग के अंत तक।
पूरा नाम | वर्मा मलिक |
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प्रसिद्ध नाम | बरकत राय मलिक |
जन्म | 13 अप्रैल, 1925 |
जन्म भूमि | फ़िरोज़पुर |
मृत्यु | 15 मार्च, 2009 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
संतान | पुत्र- राजेश मलिक |
बरकत राइ मलिक का विवादित गाना:
दोस्तों नमस्कार, आज हम इस ब्लॉग में बात करेंगे महान गीतकार बरकत राइ मलिक उर्फ वर्मा मलिक की शुरुआत करते हैं उनके एक मशहूर गीत के बनने की कहानी से। यह गाना सुनने में जितना मजेदार है उतना ही मजेदार है इसके बनने की कहानी बात है साल 1973 की जब प्रख्यात फ़िल्मगार मनोज कुमार के कहने पर गीतकार वर्मा मलिक ने फ़िल्म रोटी कपड़ा और मकान के लिए महंगाई पर एक गाना लिखा गाना क्या कववाली बन गई।
उसे पहले तो पढ़कर सब हसे कॅन्टेंट पर भी और इस पर भी की क्या यह फ़िल्माने योग्य गाना है! वर्मा मलिक ने मनोज को कन्विंस किया की इसमें हिट होने की पर्याप्त गुंजाइश है रिकॉर्डिंग शुरू हुई गाना गाने आई लता जी का मारे हँसी बुरा हाल था कहाँ से शुरू और बीच में कहाँ बहक जाता है गाना दूसरे गायक मुकेश चंचल और जानी बाबू कवाल भी कतई सीरियस नहीं थे।
संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को भी इसमें कुछ दम नहीं दिखा जैसे तैसे गाना रिकॉर्ड हुआ फरमांगन के समय भी आर्टिस्ट मौसमी चटर्जी और प्रेमनाथ का हंस हंस कर बुरा हाल था सबके मन में कई सवाल कौन रहे थे यह कैसा दाना है कैसा रिस्पांस मिलेगा पब्लिक का लेकिन जैसे ही सब स्टूडियो से बाहर निकले तो सुना क्या यूनिट के जूनियर आर्टिस्ट से लेकर स्पॉट बॉय तक हर छोटा आदमी गुनगुनाते हुए मिला बाकी जो बचा था महंगाई मार गई।
सिर पर रात हो रही आई मौत गई महँगाई मारी और फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले ही सुपरहिट हो गया यह गाना 30 पर ऐसा माहौल की महंगाई और अराजकता से परेशान जनता जनार्दन की आवाज बन गया था यह गाना हर गली कूचे में छा गया तत्कालीन इंदिरा सरकार भी परेशान होठी कुछ अरसे तक प्रतिबंधित भी रहा इसकी लम्बाई भी नहीं अखरी किसी को।
बरकत राइ मलिक की शुरुआती जिंदगी:
गीतों को लेकर उनका यह बागी तेवर कोई नया नहीं था दशकों पहले बचपन में भी उन्होंने तब फिर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ ऐसा गीत लिखा था की उन्हें जेल में ठूस दिया गया था क्या था पूरा मामला ये अब बताने से पहले एक नज़र उनके जीवन की शुरुवात ही सफल पर बरकत राय मलक 13 अप्रैल 1925 को फिरोजपुर पाकिस्तान में जन्मे थे। शुरू में पढ़ाई लिखाई हुई वही के स्कूल में उन्हें बचपन से ही संगीत और कविताओं का शौक था बहुत कम उम्र में ही उन्होंने कविता लिखनी शुरू कर दी, उन्होंने अपनी पहली कविता एक गुरुद्वारा में पढ़ी थी जहाँ उन्हें बहुत पसंद किया गया वो दौर आजादी की लड़ाई का था।
स्कूल में पढ़ रहे बरकत राय मालिक अंग्रेजों के खिलाफ़ गीत लिख कर जलसों और सभाओं में सुनाया करते थे इसका अंजाम यह हुआ उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। लेकिन कम उम्र होने की वजह से वो जल्द ही रिहा भी कर दिए गए बाद में वो गुरुद्वारा में भजन लिख कर गाने लगे अभी वो अपने गीतों की प्रशंसा और सराहना में ही मगन थे कि देश का विभाजन हो गया ।
विभाजन के हंगामे में उन्हें पैर में गोली लगी उन्होंने दिल्ली में शरण ली संगीत निर्देशक हंसराज बहल के भाई बरकत राइ मलिक के दोस्त थे उनके कहने पर बरकत ने मुंबई की राह पकड़ी हंसराज बहल ने बरकत को 1949 में आई हिंदी फ़िल्म चकोरी में कुछ गीतों को लिखने का काम दिया इस फ़िल्म में 10 गाने थे जिन्हें लता मंगेशकर जी, मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्ता जैसे कलाकारों ने गीत गाए थे। कई हिट गाने लिखने वाले बरकत राय देखते देखते हिट गीतकार बन गए थे इसी समय उनके मित्रों ने उन्हें नाम बदलने की सलाह दी बरकत राय मलिक वर्मा मालिक के नाम से फिल्मी दुनिया में पहचाने जाने लगे।
बरकत राइ मलिक को पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री से फायदा नहीं हुआ:
हंसराज बहल के निकटता में बरकत राइ मलिक साहब ने संगीत की समझ भी विकसित की और यमला जट सहित 3 पंजाब की फिल्मों में संगीत भी दिया। उन्होंने तकरीबन 40 पंजाबी फिल्मों में गीत लिखे और सभी गीत काफी पसंद किए गए गाने लिखने के अलावा उन्होंने 2 या 3 फिल्मों के संवाद लिखे, संगीत दिया और इतनी ही नहीं पंजाबी फिल्मों का निर्देशन भी किया। हालाँकि पंजाबी फिल्मों में काम करने के दौरान वर्मा मलिक ने कुछ हिंदी फिल्मों में भी गीत लिखे।
चकोरी के अलावा साल 1952 में आई जग्गू और साल 1955 में रिलीज़ श्री नगद नारायण साल 1957 में रिलीज़ मिर्जा साहिबन के लिए भी गाने लिखे थे मगर उन्हें उतना मौका नहीं मिला जीतने के वो हकदार थे, लिहाजा वो पंजाबी फिल्मों में ही रमे रहे, उनकी ज़िन्दगी अच्छी कट रही थी मगर छठा दशक शुरू होते होते होते मुंबई में पंजाबी फिल्मों का बाजार एकदम खत्म हो गया इसका असर गीतकार बरकत राइ मलिक पर भी पड़ा उन्हें काम मिलना बंद हो गया।
पंजाबी फ़िल्म इंडस्ट्री के बंद होने से वर्मा मलिक के सामने एक बार फिर नए सिरे से रोज़ी रोटी की चुनौती आन पड़ी। कुछ अरसे तक उन्होंने कोई काम नहीं किया साल 1967 में संगीतकार ओ पी नैयर ने उन्हें फ़िल्म दिल और मोहब्बत के गाने लिखने का मौका दिया इस फ़िल्म का गीत आँखों की तलाशी दे दे मेरे दिल की हो गई चोरी काफी मकबूल हुआ। बावजूद इसके बरकत राइ मलिक की किस्मत उनसे रूठी रही हिंदी फिल्मों में काम मिलना उनके लिए मुश्किल बना रहा।
बरकत राइ मलिक को मनोज कुमार का साथ मिला:
उसी साल गर्दिश के दिनों में एक रोज़ वो फेमस स्टूडियो के सामने से गुजर रहे थे तो उन्हें अपने मित्र मोहन सहगल की याद आई, वो उनसे मिलने पहुंचे तो बातों बातों में संगीतकार कल्याण जी आनंद जी का जिक्र छिड़ा मोहन सहगल ने उनसे इस संगीतकार जोड़ी से मुलाकात करने को कहा उस वक्त फ़िल्म में दुनिया की यह हिट संगीतकार जोड़ी निर्माता निर्देशक अदाकार मनोज कुमार की फ़िल्म उपकार का संगीत तैयार कर रही थी। वर्मा मलिक जब उनसे मिलने पहुंचे तो मनोज कुमार भी वहाँ मौजूद थे। मनोज कुमार के पिता वर्मा मलिक के पिता के परिचित थे, सो दोनों एक दूसरे को जानते थे।
मनोज कुमार ने बरकत राइ मलिक से पूछा कि क्या कुछ नया लिखा है इस गीतकार ने उन्हें तीन चार गीत सुनाए जिसमें एक गीत यह भी था ‘रात अकेली सायद हुस्न भी हो और इश्क भी हो तो फिर उसके बाद इख़्तारा बोले तो’ मनोज को यह गीत पसंद आ गया। और उन्होंने अपनी फ़िल्म उपकार के लिए इस गीत को चुन लिया लेकिन बदकिस्मती से उस फ़िल्म में इस गीत की सिचुएशन नहीं निकल पाई, मनोज कुमार ना ये गीत भूले ना ही वर्मा मलिक को भूल पाए उन्हें जो बतौर हीरो फ़िल्म यादगार मिली तो उन्होंने प्रोड्यूसर डाइरेक्टर एस राम शर्मा से वर्मा मालिक की सिफारिश की।
इस फ़िल्म के संगीतकार भी कल्याण जी आनंद जी ही थे। उन्होंने इस गाने को सामाजिक परिपेक्ष्य में लिखने को कहा तो वर्मा मालिक ने गीत को इस तरह बदल दिया ‘बातें लम्बी मतलब गोल खोल ना दे कही सबकी पोल तो फिर उसके बाद एक तारा बोले तुन तुन’ साल 1970 में रिलीज़ हुई फ़िल्म यादगार हिट हुई और ये गाना भी इस फ़िल्म के 3 गीत ईन्दीवर साहब ने लिखे थे और दो गीत वर्मा मलिक ने इसके बाद तो वर्मा मलिक के हाथ में काम ही काम आ गया सफलता और लोकप्रियता के उजाले में निराशा और हताशा की अंधेरे को खत्म कर दिया।
उसी साल मनोज कुमार ने उन्हें एक और फ़िल्म दिलवाई जिसमे वो हीरो थे, फ़िल्म का नाम था पहचान और इसके निर्माता निर्देशक थे सोहनलाल कंवर संगीतकार थे शंकर जयकिशन और इस फ़िल्म में 7 गाने थे जिनमें से 3 वर्मा मलिक के हिस्से में आते। खास बात यहाँ रही की वर्मा मलिक को इस फ़िल्म के गाने ‘सबसे बड़ा नादान वही हैं’ के लिए उस साल के सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्म फेयर अवार्ड अवार्ड भी मिला। इस संगीत की संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन और गायक मुकेश जी को भी इस गीत के लिए फ़िल्मफेयर ने पुरस्कार से नवाजा।
इस गीत ने उनकी पहचान एक गंभीर गीतकार के तौर पर बनाई। साल 1970 में ही बतौर हीरोइन रेखा की पहली हिंदी फ़िल्म सावन भादो आई जिसमें वर्मा मालिक साहब के लिखे एक गीत ने कई साल तक धूम मचाया। गीत के बोल बेहद चालू भाषा में और सरल शब्दों में थे इसलिए लोगों के जुबां पर फौरन चढ़ गए। यह गीत खासा लोकप्रिय रहा इस फ़िल्म के संगीतकार थे सोनिक ओम और सभी गाने वर्मा मालिक ने ही लिखे थे सभी गाने एक से बढ़कर एक साबित हुए। कई गाने तो आज भी संगीत प्रेमियों की जुबान पर कायम है।
उसके बाद तो बरकत राइ मलिक के हिट गीतों का सिलसिला शुरू हो गया। साल 1971 में उन्होंने 8 फिल्मों के लिए गीत लिखे। मूल रूप से पंजाबी और उर्दू जानने वाले वर्मा मलिक को मुंबई आते ही हिंदी की अहमियत का एहसास हो गया उन्होंने इस भाषा को कितनी गहराई से पढ़ा इसका सबूत साल 1971 में आई फ़िल्म हम तुम और वो किस गाने से मिलता है। ‘यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्री गणेश करें’ ये इकलौता ऐसा गाना था जिसमें गुड हिंदी शब्दों का प्रयोग किया गया और गाना बेहद हिट हुआ। दिलचस्प बात तो ये है कि बरकत राइ मलिक की हिंदी की वर्णमाला तक लिखना नहीं जानते थे।
साल 1972 में भी उन्हें 8 फिल्मों मिली। इस साल 1972 में उन्हें फ़िल्म बेईमान के एक गाने के लिए फ़िल्म फेयर अवार्ड अवार्ड भी मिला, जिससे मुकेश साहब ने अपनी आवाज दी। गौर करने वाली बात तो ये है की फ़िल्म बेईमान के निर्माता भी वही सोहनलाल कंवर थे जिन्होंने दो साल पहले फ़िल्म पहचान बनाई थी। इस फ़िल्म के भी हीरो मनोज कुमार थे संगीतकार भी शंकर जयकिशन ही थे और उन्होंने इसकी सभी सातों गीत वर्मा मलिक साहब से ही लिखवाये। मनोज कुमार ने उनका साथ लम्बे अरसे तक निभाया और बतौर निर्माता निर्देशक भी उनकी कोशिश होती थी की अपनी हर फ़िल्म में वर्मा मलिक को शामिल करे।
साल 1987 में मनोज कुमार की फ़िल्म कलयुग और रामायण आई तो उसमें भी गीतकार वर्मा मलिक को ही रखा गया। साल 1988 में आई फ़िल्म वारिस मैं बरकत राइ मलिक के गीतों ने एक बार फिर उनकी योग्यता को साबित कर दिया, इस फ़िल्म के कई गाने लोगों की जुबां पर चढ़ गए थे। कई गीतों में पंजाबी के बोल भी थे लेकिन लोगों ने उन्हें सर आँखों पर बिठाया। उन्होंने
साल 1988 में फ़िल्म इंदिरा और देश के दुश्मन के बाद लंबे अरसे तक कोई गीत नहीं लिखा। दरअसल 1990 का दर्शक आते आते अक्शॅन फिल्मों का जलवा हो गया था ऐसे में वर्मा मालिक के सरल और अर्थपूर्ण गीत लिखने का सिलसिला भी रुक सा गया। उम्र और जीवन संगिनी के वियोग में उन्हें शांत रहने पर आमादा कर दिया, धीरे धीरे वो फ़िल्मी दुनिया से ही नहीं पूरी दुनिया से कटकर जूहु मुंबई के अपने घर में अपने कमरे में सिमट गए।
हालांकि साल 1999ं में जब मनोज कुमार ने अपने बेटे कुणाल गोस्वामी को लेकर फ़िल्म जय हिन्द बनाई तो उसके लिए उन्होंने वर्मा मालिक से ही गीत लिखवाये। इसके बाद उनकी कोई गीत रचना सामने नहीं आई।
साल 2009 में 15 मार्च को बरकत राइ मलिक साहब ने बहुत खामोशी से 83 वर्ष की आयु में दुनिया से विदा ली। इतनी ख़ामोशी से की उनके मरने का जिक्र अगले दिन किसी अखबार में भी नहीं हुआ। तो दोस्तों ये ब्लॉग आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके अवश्य बताएं अगर आपके पास वर्मा मलिक साहब के बारे में और भी कोई जानकारी हो तो वह भी कमेंट करके बताएं तो अब दीजिए मुझे इजाजत, नमस्कार।