आशा सचदेव: मुस्लिम परिवार में जन्मी , हिन्दू बनी , टॉप की एक्ट्रेस थी , अफेयर्स भी की लेकिन ताउम्र शादी नहीं की ? Asha Sachdev Biography.

आशा सचदेव: उनकी आँखें इतनी खूबसूरत और आकर्षक थी की हर कोई उनके सम्मोहन में खींचा चला जाता था। हर कोई उनकी सुंदरता और मोहक अदाओं का कायल था और अपने दौर में उन्होंने हर नामी गिरामी फ़िल्म स्टार्स व डायरेक्टर्स के साथ काम किया। वो एक प्रशिक्षित अदाकारा थी और लीड हो या साइड हो या फिर वैम।

उन्होंने हर तरह के किरदार बिना किसी झिझक के निभाये और दर्शकों के बीच काफी पसंद भी की गई लेकिन क्या आप जानते है क्यों नदाकारा के चढ़ते करियर पर अचानक क्यूँ ब्रेक लग गया और क्या आप यकीन कर सकते हैं की इन अदाकारा का लगभग पूरा परिवार फिल्मों में हैं लेकिन वो बिना किसी को बताए गुमनामी के अंधेरे में चली गई।

और क्या आप सोच सकते हैं कि इन हसीना अदाकारा ने निजी जिंदगी में प्यार तो किया? मगर कभी? किसी से शादी नहीं की। कौन है वो अदाकारा और कौन है उनके रिश्तेदार? कैसे एक मुस्लिम माता पिता के संतान होने के बावजूद वो बन गई हिंदू? क्यों और किसने रची उनके खिलाफ़ साजिश ? जानेंगे और भी बहुत कुछ बस बने रही है हमारे साथ।

दोस्तों नमस्कार आज इस ब्लॉग में हम चर्चा करेंगे बोल्ड और बिंदास अदाकारा आशा सचदेव की। 70 और 1980 के दशक की यह मशहूर एक्ट्रेस है, काफी पॉपुलर थी और करोड़ों दिलों पर राज़ करती थी। आइए जानते हैं आशा सचदेव की जिंदगी और उनके करियर के बारे में।

Born27 May 1956 (age 67 years)
ParentsRanjana Sachdev, Ahmed Ali Khan
SiblingsAnwar, Arshad Warsi
आशा सचदेव

आशा सचदेव की शुरूआती जिंदगी:

आशा सचदेव
आशा सचदेव

आशा सचदेव का जन्म बम्बई में हुआ था। 27 मई 1956 को नसीफा सुल्तान के तौर पर उनके पिता का नाम था आशिक हुसैन वारसी जो गजले और शायरी लिखते थे और माँ का नाम था रजिया जो फिल्मों में अक्टिंग करती थी इस दम्पति की कुल तीन संताने हुई, दो बेटियां और एक बेटा। लेकिन 1960 के दशक की शुरुआत में दोनों का तलाक हो गया। बेटियां चली गई माँ के पास और बेटा पिता के साथ रह गया। कुछ ही अरसे के बाद नफीसा ये दूसरी शादी कर ली। बम्बई के एक जाने माने वकील के साथ जिनका नाम था आई सी सचदे रज़िया ने अपने धर्म और नाम बदल कर रंजना सचदेव रख लिया।

जबकि नसीफा का नाम बदलकर आशा सचदेव रख दिया। आशा सचदेव की छोटी बहन का नाम भी उनकी माँ ने रेशमा सचदेव रख दिया। उनके भाई व माँ के परिवार के बारे में हम आगे चर्चा। करेंगे। अब जिक्र आशा सचदेव के फिल्मों में आने की रंजना सचदेव 1950 और 60 के दशक में कुछ फिल्मों में छोटे मोटे किरदारों में नजर आई। आशा को अपनी माँ की तरह ही फिल्मों में काम करने और खूब नाम कमाने का शौक था। उनके नए पिता और माँ ने उन्हें बढ़ावा भी दिया और अक्टिंग का प्रशिक्षण भी दिलवाया। पुणे के फ़िल्म प्रशिक्षण संस्थान में उनका दाखिला भी हुआ और वह वहाँ से अक्टिंग में डिप्लोमा लेकर निकले।

आशा सचदेव का फिल्मी सफर की शुरुआत:

आशा सचदेव
आशा सचदेव

जब वो मुंबई पहुंची तो उन्हें जो पहली फ़िल्म मिली उसका नाम था डबल क्रॉस। विजय आनंद और रेखा के मुख्य किरदारों वाली इस फ़िल्म रिलीज़ हुई थी 1972 में उस फ़िल्म में आशा का भी अहम रोल था। हालाँकि यह फ़िल्म कुछ खास नहीं चली, लेकिन आशा सचदेव के अभिनय को फ़िल्म इंडस्ट्री के लोगों ने नोटिस किया। उसी साल उन्हें एक और फ़िल्म मिली जिसका नाम था बिंदिया और बंदूक। इस फ़िल्म में वो मुख्य अदाकारा की भूमिका में थी। उनके हीरो थे किरण कुमार, रज़ा मुराद, कैस्ट्रो मुखर्जी और टनटुन आदि कलाकारों से सजी हैं फ़िल्म हालांकि बहुत कम बजट की थी।

लेकिन खासे हिट रही इस फ़िल्म में उन्हें कम बजट फिल्मों विस्थापित कर दिया। अगले साल यानी 1973 में उन्हें कई फिल्मों मिली जिनके नाम थे हाथी के दांत कसम, कश एक नारी, दो रूप और हिफाजत। कुछ फिल्मों में उनका सीमित रोल था तो कुछ में ज्यादा। उस साल उन्हें बतौर हीरोइन जो फ़िल्म मिली थी उसका नाम था। हिफाजत इस फ़िल्म में उनके हीरो थे विनोद मेहरा। फ़िल्म में बाकी कलाकार थी अशोक कुमार, मदन पूरी, ललिता पवार और रंजीत आदि। फ़िल्म चल निकली और आशा सचदेव की अदाकारी को भी पसंद किया गया।

सन 1974 में उन्हें कई फिल्मों मिली, जिनमें एक थी वादा तेरा वादा। इस फ़िल्म में भी उनके हीरो थे विनोद मेहरा। फ़िल्म में अन्य कलाकार थे डैनी डेंजरस, राधा सलुजा और नंदिता ठाकुर आदि या फ़िल्म भी ज्यादा चल नहीं पाई हालांकि आशा सचदेव बतौर हिरोइन काफी मेहनत व लगन से अक्टिंग कर रही थी। लेकिन वह जब सीधे साधे रोल में आई तो लोगों ने उन्हें कम नोटिस किया मॉडर्न कपड़ों में वह हद से ज्यादा हॉट लगती थी और शायद यही कारण रहा कि उन्हें ग्लैमरस रोल ही दिए गए। इसकी बानगी दिखी 1974 में ही रिलीज़ हुई नवीन निश्चल और रेखा के मुख्य भूमिका वाले फ़िल्म वो नहीं ।

मैं इस फ़िल्म में जब आशा सचदेव फ़ॉर्मूला डालें बनकर लाल पैंट पहनने परदे पर उतरी तो दर्शकों की सीटियां थमने का नाम नहीं ले रही थी। उस साल आई उनकी दूसरी फिल्मों थी दो चट्टानें, परिणय और दो नंबर के अमीर, उन्हें साइड हीरोइन या कैरेक्टर रोड हर तरह के किरदार मिलने लगे। 1975 में आई हरमेश मल्होत्रा की फ़िल्म लफंगे जिसमें रंधीर कपूर, मुमताज़ और प्राण जैसे दिग्गज कलाकार लगाये थे। वर्ष 1976 में उन्हें कई फिल्मों मिली लेकिन शक्ति सामान्त के फ़िल्म महबूबा में रीता मल्होत्रा के किरदार के लिए उन्हें अर्से तक याद रखा जाएगा।

उस साल आई उनकी दूसरी फ़िल्म में थी लड़की, भूली भरी शाही लुटेरा और हरफनमौला वर्ष 1982 में फ़िल्म सत्य पे सत्ता में उनकी भूमिका छोटी किंतु सशक्त। थी इस फ़िल्म में वो हीरोइन हेमा मालिनी की छह बहनों में से एक बनी थी।

छोटे पर्दे पर किया काम:

आशा सचदेव को काम तो मिलता रहा लेकिन ये रोल उस स्तर के नहीं रहे जिसकी चाहत हर ऐक्टर को होती है। हालांकि मीडिया में इसके पीछे वजह यह बताई गई करियर की शुरुआत में उन्होंने ही बिंदिया और बंदूक जैसी फिल्मों में काम किया था। लेकिन इसके बावजूद उन्हें दर्जनों ए ग्रेड फिल्मों में काम मिला। कुछ समीक्षकों का मानना था कि उन दिनों कुछ हाई प्रोफाइल अदाकाराओं ने उन्हें लेबल्ड करार देकर बदनाम किया था और शायद यही वजह रही कि आगे इनके साथ ज्यादातर ए ग्रेड के निर्देशकों ने तो बिल्कुल ही कन्नी काट ली।

नतीजा ये हुआ कि आशा सचदेव के हाथ से कई बड़ी फ़िल्म निकल गई। इसके बाद ना चाहते हुए भी आशा सचदेव को कम बजट वाली फिल्मों में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जहाँ एक समय सभी आशा सचदेव में पोटेंशिअल होने की बात करते थे, वही एक वक्त ऐसा भी आया कि लीड हीरोइन को मजबूरी में सपोर्टिंग हीरोइन का किरदार निभाना पड़ा । किसी फ़िल्म में वो हीरोइन की बहन बनती तो किसी में उनका साइड रोल होता था। और आखिरी देखते देखते वो कैरेक्टर रोल तक ही सिमट कर रह गई।

फिर आशा सचदेव ने छोटे पर्दे का रुख किया और कुछ टी वि सीरियल साइन किए। वर्ष 1987 में आशा सत्यदेव टी वि सीरियल बुनियाद में नजर आई। मनोहर श्याम जोशी की पटकथा और रमेश सिप्ति द्वारा निर्देशित यह सीरियल भारतीय टेलीविज़न जगत के शुरुआती दौर के धारावाहिक को में से था, जो खासा लोकप्रिय रहा। इसमें शन्नो के महत्वपूर्ण किरदार में आशा सचदेव ने बढ़िया काम किया। 1989 में आशा सचदेव दो फिल्मों में नजर आई। ये फ़िल्म थी ईश्वर और आखिरी मुकाबला। हालांकि दोनों ही फिल्मों में इनका साधारण किरदार रहा।

इसके अलावा भी आशा सचदेव कई और फिल्मों में भी चरित्र भूमिकाएं निभाती देखी गई और टीवी पर भी काम करती रहीं पर धीरे धीरे आशा सचदेव ने फिल्मों को अलविदा कह दिया और लाइट कैमरा से दूरी बना ली। आशा सचदेव को हमेशा ही इस बात का मलाल रहा कि उन्हें अच्छे किरदार निभाने को नहीं मिले और फ़िल्म इंडस्ट्री के लोगों तक ने उनसे मुँह मोड़ लिया। ना जाने किस बात के लिए आशा सचदेव को ये सजा मिली वो खुद भी नहीं समझ पाई।

आशा सचदेव की निजी जिंदगी:

दोस्तों आशा सचदेव की फैम्ली लाइफ की बात करें तो उनके भाई जो अपने पिता के साथ चले गए थे, वह बाद में एक मशहूर सिंगर बने, जिनका नाम अनवर हुसैन है। वही जाने माने ऐक्टर अरशद वारसी इनके सौतेले भाई हैं। रज़िया यानी रंजना सचदेव से तलाक के बाद आशिक हुसैन वारसी ने अरशद की माँ से शादी की थी। हालांकि अनवर हुसैन ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था की उनके रिश्ते आशा सचदेव से तो पारिवारिक है, लेकिन सौतेले भाइयों में कोई अपनापन नहीं।

आशा सचदेव के कभी किसी अफेयर की खबर सामने नहीं आये लेकिन ये बिज़नेस मैन किशन लाल को पसंद करती थी और उनसे शादी करना चाहती थी। लेकिन अफसोस शादी से कुछ रोज़ पहले एक कार अक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई। जब वो सिर्फ 30 साल के थे। इसके बाद। आशा ने कभी किसी से शादी नहीं की और आजीवन कुंवारी रही। दोस्तों आशा सचदेव अब फिल्मों दुनिया से दूर है और फिलहाल अकेली ही अपनी जिंदगी बता रही है। हम उनके सुखी जीवन की कामना करते हैं।

तो दोस्तों आपको हमारी स्टोरी कैसी लगी? बॉक्स में जरूर बताये, नमस्कार।

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