क्या आप जानते हैं, 200 तरह की मिर्चियां उगाते हैं आर डी बर्मन, आर डी बर्मन की माँ ने कहा था मेरी लाश पर होगी आशा भोसले से शादी। और बैंक लॉकर का अनसुलझा रहस्य। किसने और क्यों नाम दिया पंचम दा? और कैसे एक फेन ने शर्त के लिए डेट पर बुलाया और हो गई शादी? और कैसे तलाक के गम में कम्पोज़ किया था गाना मुसाफिर हूँ यारो जो ऐसा हिट हुआ की हिस्टरी बना दिया।
कहानी उस लॉकर की भी जिसमे पड़ा था ₹5 का नोट, आज भी है रहस्य तो ऐसे कई रहस्य जो आर डी बर्मन से जुड़े है को जानने के लिए बने रहे स्टोरी के अंत तक। तो दोस्तों इस ब्लॉग को पूरा देखे और कमेंट करके अपना सुझाव अवश्य दें।
विवरण | जानकारी |
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जन्म | 27 जून 1939 |
स्थान | कोलकाता, भारत |
मौत | 4 जनवरी 1994 (उम्र 54) |
स्थान | मुम्बई, भारत |
पेशा | गायक, संगीत निर्देशक, निर्माता |
कार्यकाल | 1961–1994 |
जीवनसाथी | रीता पटेल (1966–1971) (तलाक हुआ) |
आशा भोसले (1980–1994) (अपनी मृत्यु तक) | |
माता-पिता | एस. डी. बर्मन |
मीरा देव बर्मन (दासगुप्ता) |
आर डी बर्मन की शुरुआती जिंदगी और किसने रखा उनका नाम पंचम दा:
आर डी बर्मन का जन्म 27 जून 1929 को हिंदी फ़िल्म के म्यूसिक कम्पोजर और सिंगर सचिन देव बर्मन, एस टी बर्मन और मीरा देव बर्मन के घर कोलकाता में हुआ था। उनका नाम तो राहुल था, लेकिन दादी प्यार से उन्हें दुबलू बुलाती थी। बचपन से जब भी रोते थे तो उनके रोने पर पांच सुर निकलते थे। वही जब एक बार एस डी बर्मन के घर पहुंचे अशोक कुमार ने उन्हें रियाज पर ‘प’ का बार बार इस्तेमाल करते हुए सुना तो उनका नाम पंचम रख दिया। जब आर डी बर्मन हिंदी सिनेमा में आए तो उन्हें पंचम दा नाम से ही पहचाना गया।
हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत के मुताबिक पंचम पांचवे स्केल में गाना को कहा जाता है। आर डी बर्मन भारतीय संगीत को जिसने अपने हुनर से तराशा और अपनी धुनों से हिंदी सिनेमा को हुस्न बक्सा धुनों के सरताज़ राहुल देव बर्मन का एक नाम और भी था। पंचम यानी सरगम का पांचवा सुर।
आर डी बर्मन का हिंदी सिनेमा में योगदान:
हिन्दी सिनेमा संगीत में उनके योगदान पर डालते है एक नज़र ये वो दौर था जब देश को आज़ादी मिले डेढ़ दशक ही बीते थे। भारतीय सिनेमा अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा था। राज़ कपूर, दिलीप कपूर, देव आनंद जैसे दिग्गज कलाकार अपनी अदाकारी से हिन्दी सिनेमा को कही नई बुलंदियों पर ले जाने का प्रयास कर रहे थे। हिंदी सिनेमा में संगीत की भूमिका को ये सभी लोग जान चूके थे इसलिए ऐक्टर के बाद सबसे अधिक डिमांड म्यूसिक डाइरेक्टर की ही थी। इस दौर में फिल्मी संगीत को दो अलग अलग भागों में बांटा हुआ था।
एक हिस्सा वो जो शास्त्रीय संगीत से बेहद प्रभावित था। नौशाद, खयास, एस डी बर्मन, ओ पी नैयर, मदन मोहन, हेमंत कुमार, श्री रामचंद्रन रोशन, वसंत देसाई आदि ऐसे संगीतकार थे जो भारतीय शास्त्री संगीत के साथ नए प्रयोग कर रहे थे। उस जमाने में इनका संगीत लोकप्रिय तो था। लेकिन आम नहीं था। वही दूसरी तरफ शंकर जयकिशन, कल्याण जी, आनंद जी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, श्री राम चंद्र आदि ऐसे संगीतकार थे जो विशुद्ध शास्त्रीय संगीत से संगीत बना रहे थे।
50 और 60 के दशक में श्री रामचंद्रन हिंदी सिनेमा के पहले संगीतकार थे, जो अपनी धुनो में वेस्टर्न मुसिकल इन्स्ट्रुमेंट्स का प्रयोग कर लोगों को सुना रहे थे। ये वही दौर था जब गोवा से म्यूसिक अरेंजर हिंदी सिनेमा संगीत पर छाये थे। इस दौर में स्ट्रिंगस्ट्रूमेंट्स का जमकर प्रयोग हो रहा था, लेकिन 70 के दशक तक आते आते हिन्दी सिनेमा संगीत में बड़े बदलाव की हार्ट होने लगी थी। पंचम ने इसी बदलते दौर की इबधता में अपनी आमद दर्ज कराई थी। इसके बाद जो कारनामे पंचम ने किया उन्हें हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया वाकिफ हैं। जिद ऐसी की पिता की बात भी ना सुनते।
उस्ताद अली अकबर खान, पंडित समता प्रसाद और सलील चौधरी से संगीत के शिक्षा लेने के बाद आर डी बर्मन अपने पिता को असिस्ट करना शुरू कर दिया था। कई बार काम की वजह से दोनों में अनबन हो जाती थी। आर डी बर्मन की जिद की वजह से कई बार बर्मन दा स्टूडियो से नाराज होकर चले जाते थे, लेकिन आखिर में बेटे की बात उन्हें मानने ही पडती थी।
आर डी बर्मन के स्कूल का एक किस्सा:
पंचम दा बचपन से ही धुनें बनाने लगे थे। बेटे के इस हुनर की जानकारी पिता को तब लगी जब पंचम स्कूल में बेहद कम नंबर लेकर के आए थे। इस घटना से घर में सन्नाटा पसर गया। पिता सचिन देव बर्मन को जानकारी हुई तो मुंबई से फौरन कोलकाता आ गये। पंचम का रिपोर्ट कार्ड देख कर पूछा आखिर करना क्या चाहते हो? पंचम ने कहा संगीतकार बनना चाहते हैं वो भी आपसे भी बड़ा? पिता ने पूछा ये काम इतना आसान नहीं है। फिर उन्होंने कहा कोई धुन बनाई है? इसके प्रश्न के उत्तर में पंचम ने एक नहीं पूरी नौ धुनें पिता के हाथों में थमा दी।
आर डी बर्मन को शुरुआत में फिल्म कैसे मिली?:
आइए जानते हैं कैसे मिली थी पहली फ़िल्म सबसे पहले 1958 में गुरुदत्त ने आर डी बर्मन को फ़िल्म राज़ में म्यूसिक कम्पोज़ करने का मौका दिया। लेकिन ये फ़िल्म कभी बन ही नहीं सकी। इसके बाद उन्होंने 1961 की फ़िल्म सोलवा साल से बतौर म्यूसिक डाइरेक्टर करियर की शुरुआत की थी। दरअसल महमूद इस फ़िल्म में एस डी बर्मन से गाने कम्पोज करवाना चाहते थे। जब इस सिलसिले में वो उनके घर पहुंचे तो एस डी बर्मन ने ये फ़िल्म करने से इनकार कर दिया। इसी समय महमूद की नजर पास के कमरे में तबला बजाते हुए आर डी बर्मन पर पड़ गयी।
फिर क्या था महबूब ने इस फ़िल्म के गाने कम्पोज़ करने की जिम्मेदारी आर डी बर्मन को दी थी। आर डी बर्मन की कम्पोजिशन की पहली हिट फ़िल्म तीसरी मंजिल 1966 में थी। इस फ़िल्म के गाने आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा और वो हसीना ज़ुल्फ वाली जबरदस्त हिट रहें। आगे उन्होंने बहारो के सपने, यादो की बारात, पड़ोसन, ज्वेल थीफ़ और प्रेम पुजारी जैसी फिल्मों के लिए म्यूसिक कम्पोज़ किया।
आर डी बर्मन किस बात से नाराज हुए अपने पिता से:
बेटे पंचम से बिना कुछ कहे पिता एस जी बर्मन मुंबई लौट आए। कुछ दिनों बाद कोलकाता के एक सिनेमा घर में फ़िल्म फंटुश लगी, जिसकी एक गाने ए मेरी टोपी पलट के आ मैं पंचम की एक धुन पिता ने इस्तेमाल की थी। सचिन देव बर्मन इस फ़िल्म के म्यूसिक डाइरेक्टर थे।
पंचम गाने के धुन सुनकर पिता से बहुत नाराज हुए और पिता से बोले आपने मेरी धुन चुराई है? इस पर एस डी बर्मन ने पंचम से कहा नाराज ना हो पंचम मैं तो ये देखना चाहता था की क्या लोगों को तुम्हारी धुन पसंद आती है की नहीं तो इससे नौ वर्ष की उम्र में ही उनकी पहली कंपोजिशन चोरी भी हुए और हिट भी हुए।
आर डी बर्मन की शादी कैसे हुई एक फैन से:
ये भी काफी चौंकाने वाली बात है की एक फेन शर्त के लिए डेट पर बुलाया और हो गई शादी हिंदी सिनेमा में अपने हुनर के बलबूते कामयाबी की सीढ़ियों चढ़ रहे है आर डी बर्मन ने 1966 में रीता पटेल से पहली शादी की थी। दरअसल दोनों का रिश्ता एक मामूली शर्त से शुरू हुआ था। रीता पटेल उनकी बहुत बड़ी फैन थी। 1 दिन उन्होंने अपने दोस्तों से शर्त लगाई की देखना मैं 1 दिन आर डी बर्मन के साथ डेट पर जाकर दिखाऊंगी। शर्त के अनुसार, रीता ने 1 दिन मौका पाते ही उनसे डेट का पूछ लिया और वह भी मान गए। एक शर्त से शुरू हुआ किस्सा 1966 में शादी में बदल गया।
आरडी बर्मन ने शादी टूटने के गम में एक गाना बनाया और किसी भी चीज पर गाना बना लेते थे:
शादी के 5 साल बाद 1971 में आर डी बर्मन और रीता का तलाक हो गया। ये दोनों का मिलाजुला फैसला था। जीस दिन आर डी बर्मन का तलाक हुआ। उस दिन वो घर ना जाकर एक होटल के कमरे में ठहर गए जहाँ केलेपन में उन्होंने अपना दर्द समेट कर एक गाना लिख दिया। वो गाना था मुसाफिर हूँ यार ना घर है ना ठिकाना, मुझे चलते जाना है। ये गाना 1 साल बाद 1972 की फ़िल्म परिचय में रखा गया जो काफी पॉपुलर हुआ था। आर डी बर्मन की सबसे खास बात ये थी की वो कभी भी और किसी भी चीज़ में म्यूसिक पैदा करने का हुनर रखते थे।
फिर चाहे वो विस्की की खाली बॉटल हो या फिर कार का बोनट, स्कूल की बेंच, पंचम दा को जैसे हर चीज़ में संगीत सुनाई देता था। देवानंद की फ़िल्म जिसका नाम डार्लिंग डार्लिंग था, इसका गीत था रात गई, बात गई मैं। पंचम ने कुछ ऐसा किया की किशोर कुमार और देवानंद भी हैरान रह गए। पंचम दा ने अपने साथी मारुति राव कीर की पीठ में ही म्यूसिक पैदा कर दिया। पंचम ने मारुति राव की से कहा की अपनी शर्ट उतारो। इसके बाद पंचम ने उनकी पीठ पर खाप लगाई। इससे वो आवाज नहीं इससे जो आवाज़ निकली उससे पंचम ने धुन के तौर पर इस गाने में प्रयोग की।
आर डी बर्मन ने एक जब बैकग्राउंड म्यूसिक में कदम रखा तो हिंदी फ़िल्म के बैकग्राउंड म्यूसिक की दिशा और दशा ही बदल दी। फ़िल्म शोले की थीम म्यूसिक के साथ बैकग्राउंड म्यूसिक की आज भी चर्चा होती हैं। फ़िल्म में डाकुओं के आने पर तबले की धुन का जीस ढंग से प्रयोग किया गया। वह किसी कमाल से कम नहीं हैं। शोले की थीम म्यूसिक में पंचम ने ट्रंपेड स्ट्रिंग इन्स्ट्रुमेंट के साथ भारतीय म्यूसिकल इन्स्ट्रुमेंट का शानदार प्रयोग किया हैं। खास बात ये हैं कि इस फिल्म का थीम पहली बार सेट ट्रैक साउंड में रिकॉर्ड किया गया था।
आर डी बर्मन के पिता का एक किस्सा:
पंचम के जीवन में एक पल ऐसा भी आया जिसे वे कभी नहीं भूल पाए और इसे याद करते हुए फक्र महसूस करते थे। पंचम के पिता एस डी बर्मन यानी सचिन देव बर्मन जो खुद भी एक बड़े संगीतकार थे। फ़िल्म जगत में इनका बहुत बड़ा आदर और सम्मान था। ये मुंबई के जुहू में एक पार्क में सुबह के समय अक्सर टहलने जाया करते थे। 1 दिन भी सुबह टहल कर घर आए और पंचम से बोले, पंचम आज मैं बहुत खुश हूँ।
पंचम हैरत में पड़ गए। की पिताजी ये क्या कह रहे हैं? वैसे तो रोज़ सुबह उठकर ताने देते हैं की देर तक सोता है, मोटा हो रहा है, आज अचानक पिताजी को क्या हो गया? एस डी बर्मन ने कहा, पंचम जो मैं पार्क में टहलने जाता हूँ तो लोग अक्सर कहते हैं कि देखो एस डी बर्मन जा रहा है लेकिन आज तो कमाल ही हो गया। लोग कह रहे थे कि देखो आर डी बर्मन के पिता जा रहे हैं। इस लम्हे को पंचम अपने जीवन के सबसे अच्छे पलों में से एक मानते थे।
आर डी बर्मन को गुलजार के गाने मुश्किल लगते थे:
आर डी बर्मन ने अपने दौर के हर सफल गीतकारों के साथ काम किया। लेकिन गुलजार के साथ पंचम को सबसे अधिक मुश्किल आती थी। बावजूद इसके दोनों ने मिलकर शानदार गाने बनाये। फ़िल्म आंधी के गीत लेकर जब गुलजार पंचम के पास पहुंचे तो ये गानों को देखकर परेशान हो गए। पंचम ने गुलजार से कहा कल तुम किसी अंग्रेजी अखबार की हेडिंग को लेकर आ जाओगे और कहोगे की इस पर धुन बना दो। पंचम को गुलजार के गीतों को लेकर मानना था कि गुलजार के गानों का मीटर अलग होता है। बावजूद इसके पंचम ने तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं जैसे सदा बहार गीत बनाए।
आशा भोसले ने आर डी बर्मन का एक किस्सा बीबीसी के इंटरव्यू में कहा:
पिता के नाम से सुनाए करते थे अपने गानों की धुन से भी एक रहस्य है। आशा घोसले ने बी बी सी को दिए एक इंटरव्यू में आर डी बर्मन से जुड़ा मजेदार किस्सा सुनाया। बताया की पिताजी बर्मन के बीमार पड़ने के बाद लोगों ने आर डी बर्मन को काम देना लगभग बंद कर दिया था। जब भी वो किसी के पास काम मांगने जाते तो हर कोई बस यही कहता था की यार पंचम तुम्हारी धुनो में वो बात नहीं है जो तुम्हारे पिता के धुनो में हुआ करती थी।
एक बार जब आर डी बर्मन अपनी पत्नी आशा के साथ शक्ति सामान्त के पास पहुंचे तो उन्हें फिर यही जवाब मिला कुछ नया सुना जैसा तुम्हारे पिता सुनाया करते थे। ये सुनकर आर डी बर्मन ने पत्नी आशा के कानों में धीरे से कहा अब तुम मज़े देखना। ये कहते है आर डी बर्मन ने शक्ति सामान्त से कहा, मेरे पिताजी ने एक धुन बनाई थी जो आज तक कहीं इस्तेमाल नहीं हुई। क्या वो धुन आपको सुनाऊ चालाकी से आर डी बर्मन ने पिता के नाम से अपनी ही एक धुन सुना दी। वो धुन सुनकर शक्ति सावन में तारीफों में कसीदे पढ़ती है और कहा मैं कहता हूँ ना तुम्हारे पिता की बात ही कुछ और है।
आर डी बर्मन और आशा भोसले कैसे मिले?:
एक तरफ आई डी बर्मन की शादी टूट चुकी थी, वही दूसरी तरफ उस जमाने की मशहूर सिंगर आशा भोसले, उनके सेक्रेटरी गणपत राव भोसले से अलग होकर तीन बच्चों की जिम्मेदारियां अकेले उठा रही थी। नाकाम शादियों के गम में डूबे आर डी बर्मन और आशा भोसले को एक दूजे में हम दर्द मिल गया। दोनों की वैसे तो पहली मुलाकात 1956 में फ़िल्म तीसरी मंजिल के गाने के लिए हुई थी। लगातार सात काम करते हुए दोनों एक दूसरे को चाहने लगे और 1 दिन मौका पाते ही आर डी बर्मन ने आशा के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया।
आर डी बर्मन का कैरियर कैसे बर्बाद हुआ?:
शराब और सिगरेट की लत से बर्बाद हुआ करियर? जी हाँ दोस्तों चंद सालों बाद आर डी बर्मन की शराब और सिगरेट की लत से परेशान होकर आशा भोसले ने उनका घर छोड़ दिया। आखिरी समय में आर डी बर्मन की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। एक समय ऐसा भी रहा जब उन्हें काम मिलना बंद हो गया। सालों बाद विधु विनोद चोपड़ा ने आर डी बर्मन की मदद करते हुए उन्हें अपनी फ़िल्म 1942 से लव स्टोरी में म्यूसिक कम्पोज करने का मौका दिया। फ़िल्म के लगभग सभी गाने सुपर हिट रहे, लेकिन अफसोस की कामयाबी देखने के लिए आर डी पर मन नहीं रहे।
4 जनवरी 1994 को आर डी बर्मन 55 साल की उम्र में गुजर गए और फ़िल्म 15 अप्रैल 1994 को रिलीज़ हुई। मौत के बाद के बाद आर डी बर्मन को इस फ़िल्म के लिए बेस्ट म्यूसिक डाइरेक्टर का फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिला।
आर डी बर्मन के बैंक लॉकर का रहस्य:
वो लॉकर जिसमे परा ₹5 का नोट आज भी है रहस्य जी हाँ, दोस्तों आर डी बर्मन की मौत के कुछ समय बाद आशा भोसले को पता चला की उन्होंने सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया में बैंक में एक लाकर ले रखा है। इस लॉकर में आर डी बर्मन जीते जी हजारों रुपए का किराया दिया करते थे। कागजातों के अनुसार आर डी बर्मन की मौत के बाद इस लॉकर के हक़दार उनके सेक्रेटरी भरत असर होते। जब भारत से इस बारे में पूछा गया तो उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी। आशा ने अब पूरा घर खंगाला लेकिन उन्हें भी इसकी चाबी नहीं मिली।
ये है प्रोफाइल केस था जो हर कोई अक्टिव होकर इसमें लगा हुआ था। पुलिस ने लॉकर सील करवा दिया। और जांच शुरू कर दी। आशा भोसले को भरोसा था कि लॉकर में आर डी बर्मन की प्रॉपर्टी के जरुरी पेपर्स गहने और हीरे की खानदानी अंगूठी मिलेंगी। बैंक ने बताया की आर डी बर्मन हर महीने लाकर का किराया तो दे देते थे, लेकिन उन्होंने कभी से खोला नहीं। आखिरकार 3 मई 1994 को उनका लॉकर खोलने का आदेश जारी हुआ। हर किसी की नज़र उनकी उस लॉकर पर थी। पुलिस, बैंक मैनेजर आशा मौके पर मौजूद थे।
आखिरकार लोकर नंबर एस बी डी को चाबी नंबर 1035 से खोला गया। जैसे ही वो लॉकर खुला तो हर कोई हैरान रह गया। उस बड़े से लाकर में चारों तरफ टॉर्च घुमाया लेकिन उसमें था सिर्फ ₹5 का नोट। हर कोई हैरान था किस लॉकर के हजारों रुपए किराये में जाते हैं? उसमें कीमती सामान के नाम पर सिर्फ ₹5 क्यों हैं? पूरे लॉकर में ये एक ही नोट क्यों था? ये पंचम दा को किसने दिया? इस लॉकर का नॉमिनी उनका सेक्रेटरी ही क्यों था? ऐसे कई सवाल है जिनका आज भी कोई जवाब नहीं मिला। ये ₹5 का नोट आज भी रहस्य है।
तो दोस्तों उम्मीद है की आपको स्टोरी जरूर पसंद आई हो, कमेंट करे और आपका धन्यवाद ब्लॉग को पढ़ने के लिए।