सचिन पिलगांवकर: हिंदी सिनेमा में कई हीरो अपने चेहरे और फिटनेस के कारण नहीं बल्कि अपनी अदाकारी के हुनर के लिए जाने जाते हैं। उन्हीं में शामिल रहे 70 और 80 के दशक के एक ऐसे अभिनेता जिन्होंने अपनी मासूमियत और अक्टिंग के दम पर फ़िल्म जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
एक ऐसे ऐक्टर जिनके भोलेपन पर ना सिर्फ फ़िल्म की सह अभिनेत्रियों फिदा हो जाती थी बल्कि तमाम दर्शक भी दिल हार बैठते थे। 70 के दशक में जो फिल्मों में आधुनिकता और बाजारवाद हावी होने लगा था उस दौर में भी जब ये अभिनेता कुर्ता, गमछा धोती पहने बैलगाड़ी पर सवार होकर खेतों में देशी तान छेड़ते थे तो दर्शक दीवाने हो उठते थे।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि 4 साल की उम्र में अपनी पहली ही फ़िल्म में इन्होंने इतना बेहतरीन अभिनय किया कि जूरी और मिनिस्ट्री ने पहली बार बेस्ट चाइल्ड ऐक्टर के अवार्ड को शुरू करते हुए इन्हें नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया? क्या आप मानेंगे की महान ऐक्टर डाइरेक्टर गुरुदत्त इनकी कला से इतने प्रभावित हुए की अपने मरने के बाद भी इनसे किया हुआ वादा निभाया।
क्या आपको पता है की इन्हें खुद से 10 साल छोटी एक टीनेज लड़की से प्यार हो गया और उनसे शादी के लिए इन्हें बहुत पापड़ बेलने। और क्या आप यकीन करेंगे कि इनकी गोद ली हुई बेटी ने पब्लिकली इन पर कई ऐसे इलज़ाम लगाए कि सुनने वाले दंग रह गए। तो कौन थे ये ऐक्टर? क्या रही इनकी जिंदगी की राजदार कहानियों जानेंगे तमाम बातें आप बने रहिए हमारे साथ।
विवरण | जानकारी |
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जन्म | सचिन पिलगांवकर |
जन्म तिथि | 17 अगस्त 1957 |
आयु | 66 वर्ष |
जन्मस्थान | बम्बई, बम्बई राज्य, भारत |
वर्तमान स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र |
व्यवसाय | अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, लेखक, गायक |
सक्रिय वर्ष | 1962-वर्तमान |
जीवनसाथी | सुप्रिया पिलगांवकर (एम. 1985) |
बच्चे | श्रीया पिलगांवकर |
सचिन पिलगांवकर से जुड़ा जवाहरलाल नेहरू का किस्सा और वहीं से चाइल्ड एक्टर अवार्ड की शुरुआत:
नमस्कार दोस्तों, आज हम जीस ऐक्टर की बात कर रहे हैं। इन्हें जब इनकी पहली फ़िल्म ऑफर हुई तो इनकी उम्र महज 4 साल की थी और इनकी माँ ने फ़िल्म मेकर्स को सिर्फ इस शर्त पर बेटे से अक्टिंग कराने की इजाजत दी कि ये फ़िल्म इनकी पहली और आखिरी फ़िल्म होगी।
लेकिन कहते हैं ना कि टैलेंट बहते हुए पानी की तरह होता है जो अपना रास्ता खुद बना लेता है। फ़िल्म नेशनल अवार्ड के लिए गई और जब जूरी ने फ़िल्म देखी तो कहा कि इस फ़िल्म में बच्चे ने जबरदस्त काम किया है तो अवार्ड का हकदार तो ये बच्चा है। अवार्ड तो इसे ही मिलना चाहिए। लेकिन तब तक नेशनल अवार्ड यानी प्रेसिडेंट अवार्ड में चाइल्ड ऐक्टर का अवार्ड शामिल नहीं था तो जूरी और मिनिस्ट्री ने ये फैसला किया की बेस्ट चाइल्ड ऐक्टर का अवार्ड भी इस साल से शुरू किया जाए और ये पहला अवार्ड मिला इसी बच्चे को।
जब ये बच्चा अवार्ड लेने राष्ट्रपति भवन गया तब इसकी उम्र सिर्फ 5 साल की थी। इन्हें रिहर्सल में बता दिया गया था कि जब नाम पुकारा जाए तो सीधे चल कर मंच पर जाना, झुक कर प्रणाम करना, अवार्ड लेना और वैसे ही मुड़कर उसी रास्ते से वापस आना और अपनी कुर्सी पर बैठ जाना। जो प्रोग्राम शुरू हुआ तो इनकी माँ ने इन्हें बताया कि जो मंच पर खड़े हैं वो हमारे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधा कृष्णन है और वो जो जाकेट पहनकर बैठे हैं।प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू है। जब इनका नाम पुकारा गया तो ये चलते हुए मंच पर गए।
सारा राष्ट्रपति भवन देख रहा था कि अवार्ड लेने 5 साल का एक बच्चा आ रहा है। बच्चे ने झुक कर प्रणाम किया, प्रेसिडेंट ने अवार्ड दिया और लेकर ये वापस आने लगे। तभी एक आवाज सुनाई दी सुनो और जब इन्होंने मुड़कर देखा तो पंडित नेहरू इन्हें इशारा करके अपने पास बुला रहे थे, ये नहेरू जी के पास गए और उन्होंने इन्हें उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया। इनकी माँ आँखों में आंसू लिए उस नजारे को देख रही थी। नेहरू जी ने अपनी जेब पर लगा गुलाब निकाला और बच्चे की जेब में लगा दिया।
फिर इनकी पीठ थपथपा कर बोले बहुत आगे बढ़ोगे तुम जाओ। जब ये अपनी जगह पर चलते हुए वापस पहुंचे तो देखा कि इनकी माँ रो रही हैं। इसे देख कर ये घबरा गए क्योंकि इन्हें लगा के इनसे कोई गलती हो गई है और इसीलिए मां रो रहे हैं। तभी इनकी माँ ने कहा बेटा तो इसी काम के लिए बना है और उन्होंने इसके बाद इन्हें फिल्मों में काम करने की परमिशन दे दी। दोस्तों ये बच्चा कोई और नहीं बल्कि सचिन पिलगांवकर थे।सचिन सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि मराठी, कन्नड़ और भोजपुरी फिल्मों में भी एक जाना माना नाम रहे हैं।
सचिन पिलगांवकर की शुरुआती जिंदगी:
17 अगस्त 1957 में तब के बॉम्बे के एक कोंकणी परिवार में जन्मे सचिन के पिता शरद पिलगांवकर एक फ़िल्म प्रोड्यूसर थे और साथ ही एक प्रिंटिंग प्रेस भी चलाया करते थे। सचिन जब साढ़े 3 साल के थे तभी मराठी फ़िल्म मेकर माधवराव शिंदे ने फ़िल्म सुनवाई में सचिन को एक छोटे से रोल में लेने के लिए इनके पिता से संपर्क किया। लेकिन किन्ही वजहों से सचिन को वो फ़िल्म नहीं मिल पाई लेकिन इनके पिता को सचिन का फिल्मों में काम करने का आइडिया पसंद आ गया।
वो अपने बेटे को फ़िल्म में काम दिलाने के लिए दूसरे फ़िल्म मेकर से बातचीत करने लगे। सचिन को पहला मौका दिया राजा परांजपे ने राजा परांजपे 1961 में ‘हाँ माझा मार्ग एकला’ नाम की फ़िल्म बना रहे थे। इसमें साढ़े 4 साल के सचिन को कास्ट किया गया। जीस दिन अपने फ़िल्म करियर का पहला शॉट इन्हें देना था। उस दिन सचिन 103 डिग्री बुखार में तप रहे थे। इनके पिता ने कोशिश की कि सचिन का शूट पोस्टपोन कर दिया जाए, लेकिन चुकी सारी तैयारियां हो चुकी थी इसलिए शूटिंग शुरू करनी पड़ी।
ताजूब की बात ये रही कि जैसे ही शूट के लिए सचिन का मेकअप होना शुरू हुआ, इनका बुखार उतरने लगा और धीरे धीरे ये ठीक हो गए। साल 1962 में रिलीज़ हुई इस मराठी फ़िल्म के लिए ही सचिन को बेस्ट चाइल्ड ऐक्टर का नेशनल अवार्ड मिला था। इसके बाद सचिन ने करीब 65 फिल्मों में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया। इनमें कुछ फिल्मों रहीं मीना कुमारी के साथ मझली दीदी। देवानंद के साथ ज्वेल थीफ और शम्मी कपूर के साथ ब्रह्मचारी और संजीव कुमार के साथ बचपन।
सचिन पिलगांवकर को गुरु दत्त ने किया वादा:
सचिन जब 9 साल के थे तब महान ऐक्टर डाइरेक्टर गुरु दत्त के ऑफिस से सचिन के लिए फ़ोन आया। गुरु दत्त इनसे मिलना चाहते थे। सचिन पिलगांवकर अपने पिता के साथ मीटिंग के लिए पहुंचे तो गुरुदत्त ने कहा कि वो ओलिवर ट्विस्ट को हिंदी में बनाने जा रहे हैं। वो चाहते हैं कि उनके फ़िल्म में ओलिवर का रोल सचिन करें। उन्होंने सचिन से पूछा तुम्हारी उम्र कितनी है? जवाब आया 9 साल। गुरु दत्त ने कहा कि मगर कहानी में ओलिवर तो 11 साल का है।
यह सुनते ही सचिन ने पूछ लिया तो क्या आप फ़िल्म में किसी और को लेंगे? गुरु दत्त ने बिना कुछ सोचे समझे कहा नो आई विल वेइट् फॉर यू। लेकिन इसके कुछ समय बाद साल 1964 में गुरु दत्त साहब की मौत हो गई। हालांकि जैसा कि गुरु दत्त ने सचिन से वादा किया था तो जब ये 11 साल के हुए तो इन्हें गुरुदत्त के छोटे भाई आत्मा राम पादुकोण का फ़ोन आया और इन्हें ओलिवर ट्विस्ट के हिंदी वर्शन की स्क्रिप्ट दी गई। इन्होंने जैसे ही स्क्रिप्ट को खोला पहले ही पन्ने पर गुरु दत्त की हैंडराइटिंग में लिखा था टु बी मेड विथ सचिन व्हेन ही इस 11।
सचिन पिलगांवकर का शोले फिल्म से रोल काटा गया:
खैर, इसके बाद सचिन पिलगांवकर जब 17 साल के हुए तो इन्हें ऑफर हुई। सलीम जावेद की लिखी फ़िल्म शोले इस फ़िल्म में सचिन ने इमाम के बेटे अहमद का रोल किया लेकिन फ़िल्म में इनके साथ बुरा हुआ। दरअसल फ़िल्म में गबर अहमद को तड़पा तड़पा कर मार देता है। पकड़े जाने से लेकर गबर के हाथों मारे जाने तक का वो पूरा सीन सचिन के साथ शूट किया गया जिसमें तकरीबन 19 दिन का समय लगा। लेकिन जब शोले फ़िल्म रिलीज़ हुई तो उसमें ये सीन नहीं था।
सचिन ने एक बार अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि तब इनकी उम्र मात्र 17 साल थी, इसलिए फ़िल्म के डाइरेक्टर रमेश सिप्पी नहीं चाहते थे कि उस बच्चे के साथ स्क्रीन पर ऐसी चीजें होती दिखाई जाए। पता नहीं पब्लिक स्वीकार करें या ना करें। इसलिए उस सीन को केवल सिम्बोलिक तरीके से ही रख कर बाकी को काट दिया गया।
शोले फ़िल्म से ही जुड़ा। सचिन का एक और दिलचस्प वाकया आपको बताते हैं। फ़िल्म की शूटिंग के दौरान अपना काम खत्म करने के बाद भी सचिन रोज़ सेट पर जाते और जो रमेश सिप्पी शूटिंग कर रहे होते तो उनके कैमरे के ठीक पीछे जमीन पर चुपचाप बैठकर उनका प्रोसेसर देखते बड़े ऐक्टर्स को अकॉमडेट करने में व्यस्त सिप्पी ने टेक्नीशियन लोगों की एक दूसरी टीम बनाई। ये टीम कुछ अक्शॅन सीक्वेंस वगैरह शूट करने वाली थी और आश्चर्य ये कि इस टीम का क्रियेटिव हेड 17 साल के सचिन को बनाया गया और इनकी ही देखरेख में फ़िल्म शोले का ट्रैन वाला सीक्वेंस शूट किया गया।
हर सीन को परफेक्ट बनाने के लिए उसे कई बार शूट करने वाले सिप्पी ने जब वो शॉट देखा तो सचिन से बहुत इम्प्रेस हुए और उस सीन को जस का तस फ़िल्म में रख लिया।
सचिन पिलगांवकर बड़े होने के बाद भी काम मिला:
आमतौर पर ये देखने को मिलता है की चाइल्ड ऐक्टर्स का करियर बड़े होने के बाद ढलान पर आना शुरू हो जाता है क्योंकि उन्हें पब्लिक से लेकर फ़िल्म मेकर्स तक ने बच्चे की तरह देखा होता है। उन्हें फ़िल्म के हीरो के तौर पर देख पाना थोड़ा मुश्किल रहता है। सचिन वाले दौर में राजू श्रेष्ठ, अलंकर जोशी, जूनियर महमूद और मास्टर सत्यजीत जैसे तमाम बड़े चाइल्ड ऐक्टर्स काम कर रहे थे।
उन्होंने कई फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर काम किया था लेकिन जब बड़े हुए तो इक्का दुक्का फिल्मों में सपोर्टिंग रोल ही मिले और फिर करियर खत्म लेकिन सचिन के साथ ऐसा नहीं हुआ। बड़े होने पर भी रोमेंटिक फिल्मों के लिए ये निर्माता निर्देशकों की पसंद बने। राजश्री प्रोडक्शन के राजकुमार बड़जात्या ने सचिन की एक मराठी फ़िल्म देखी और जब तुझे सरकार उन्हें सचिन का काम पसंद आया और वो इनके साथ प्रेम और दोस्ती के इर्द गिर्द एक फ़िल्म पर काम करने लगे। उन्होंने सबसे पहले सचिन को साइन किया।
इसके बाद इनके लायक कहानी ढूंढ़ी गई। जीस पर गीत गाता चल नाम की फ़िल्म बनी इस फ़िल्म का स्क्रीन प्ले सचिन के पिता शरद पिलगांवकर और मधुसूदन कारलेकर ने मिलकर लिखा था। सचिन, सारिका और मदनपुरी के साथ बनी यह फ़िल्म म्यूसिकल हिट रही। फ़िल्म में म्यूसिक और लिरिक्स दोनों ही रविन्द्र जैन का था। इस फ़िल्म की सफलता के बाद आगे भी सचिन ने राजश्री प्रोडक्शन के साथ कई और हिट फिल्मों में काम किया।
इसके कुछ साल बाद 1982 में केशव प्रसाद मिश्रा के ट्रेस्ड इन नॉवेल कोहबर की शर्द से प्रेरित होकर राजश्री प्रोडक्शन ने एक फ़िल्म प्लान की इस फ़िल्म का नाम रखा गया नदिया के पार। सचिन, साधना सिंह और इंद्र ठाकुर को मुख्य किरदारों में लेकर बनी ये फ़िल्म बिहार और यूपी बेल्ट में बहुत बड़ी हिट साबित हुई। नदिया के पार की रिलीज के 10 साल बाद राजश्री ने इस फ़िल्म का रीमेक बनाया।
ओरिजिनल फ़िल्म के एक डायलॉग पर नई फ़िल्म का नाम हम आपके हैं कौन रखा गया माधुरी दीक्षित और सलमान खान की ये फ़िल्म भी सुपर हिट साबित हुई। एक हीरो के रूप में सचिन की सफल हिन्दी फिल्मों की लिस्ट में गीत गाता चल, बालिका वधू, अखीयो के झरोखों से, गोपाल कृष्ण, नदिया के पार और सत्ते पे सत्ता आदि रहीं।
सचिन पिलगांवकर ने डायरेक्शन में कदम रखा:
फिल्मों में हरफनमौला प्रदर्शन के साथ ही सचिन ने फ़िल्म डायरेक्शन में भी कदम रखा। 1982 में आई मराठी फ़िल्म ‘माय बाप’ डाइरेक्टर के तौर पर सचिन की पहली फ़िल्म रही। आगे सचिन ने 15 से ज्यादा मराठी फ़िल्म में डायरेक्ट की। मराठी फिल्मों में बतौर डायरेक्टर सचिन की सफलता को देखते हुए सुभाष घई ने इन्हें अपनी प्रोडक्शन कंपनी मुक्ता आर्ट्स के तहत हिंदी फ़िल्म डायरेक्शन डेब्यू करने का मौका दिया।
फ़िल्म का नाम था प्रेम दीवाने जिसमे जैकी श्रॉफ, विवेक मुश्रान और माधुरी दीक्षित में लीड रोल प्ले किये। लेकिन ये फ़िल्म फ्लॉप रही। कुछ एक हिंदी फिल्मों को और बनाने के बाद सचिन वापस मराठी सिनेमा की ओर लौट गए। 2017 में सचिन ने गोविंद निहलानी की फ़िल्म के लिए एक ग़ज़ल लिखा। गोविंद की मराठी फ़िल्म ती आणी इतर में इन्होंने बादल जो गिर के आए नाम का एक गज़ल लिखा। ये गीतकार के तौर पर इनका पहला काम था।
सचिन पिलगांवकर की पर्सनल लाइफ:
आइए अब आपको बताते हैं सचिन और इनकी पत्नी सुप्रिया की मुलाकात और इश्क की रोचक कहानी। सचिन अपनी दूसरी मराठी फ़िल्म नवरे मिलो नवव्याला बनाने जा रहे थे। इस फ़िल्म के लिए इन्हें एक नई लड़की की तलाश थी। इनकी तलाश नई नई आई सुप्रिया सबनिस नाम की लड़की पर आकर रुकी। फ़िल्म की शूटिंग के दौरान सचिन को सुप्रिया से प्यार हो गया। प्रेम तो हुआ लेकिन इज़हार करने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी।
फाइनली फ़िल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद सचिन हिम्मत जुटाकर उम्र में खुद से 10 साल छोटी सुप्रिया को अपने दिल की बात बताने पहुंचे। इन्होंने सुप्रिया से शादी के लिए पूछा। जवाब में सुप्रिया ने कहा कि मुझे लगा कि आपकी शादी हो चुकी है मगर वह शादी के लिए मान गई। जैसे ही यह बात सुप्रिया के घर वालों को पता चली उन्होंने इस शादी से सीधे इनकार कर दिया। वह जो यह थी कि सुप्रिया तब सिर्फ 17 साल की थी और कॉलेज में पढ़ रही थी। काफी मान मनौवल के बाद दोनों के घर वाले राजी हुए।
नवरी मिलो नव्याला सुपरहिट साबित हुई और इसके ठीक अगले साल 21 दिसंबर 1985 को सचिन और सुप्रिया ने शादी कर ली। सचिन और सुप्रिया की एक बेटी हुई श्रेया पिलगांवकर माता पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए श्रेया भी एक्ट्रेस बनी। इन्होंने शाहरुख खान की फ़िल्म फैन से अपना हिंदी फ़िल्म डेब्यू किया था और अमेज़ॅन प्राइम के चर्चित वेब सीरीज मिर्जापुर में स्वीटी के रोल में भी इन्हें दर्शकों ने बेहद पसंद किया।
सचिन पिलगांवकर के साथ जुड़े विवाद:
आइए अब आपको बताते हैं सचिन की जिंदगी से जुड़े एक बड़े विवाद के बारे में। अपनी बेटी श्रेया के जन्म से पहले सचिन और इनकी पत्नी सुप्रिया ने साल 1988 में एक बच्चे को गोद लिया था। बच्ची का नाम था करिश्मा मखनी, जो फ़िल्म आत्मविश्वास में चाइल्ड ऐक्टर के रूप में नजर आई थी। लेकिन कुछ साल बाद करिश्मा अपने बायोलॉजिकल पेरेंट्स के पास वापस लंदन चली गई। बड़े होने पर करिश्मा भारत वापस आइए और फिल्मों में एस एन एक्ट्रेस किस्मत आजमाने लगी।
साल 2005 में सचिन और सुप्रिया ने रियलिटी शो नच बलिये जीता और शो के ही दौरान उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि उनकी गोद ली हुई बेटी करिश्मा को उसके बायोलॉजिकल फादर कुलदीप मखणे चुपके से लेकर चले गए थे। ये खबर जब मीडिया में सुर्खियां बनी तो करिश्मा मखनी सामने आई और एक इंटरव्यू देकर सारी सच्चाई से पर्दा उठाया और सचिन पर कई इलज़ाम लगाए। करिश्मा के अनुसार उन्होंने बताया कि उनके पिता कुलदीप मखानी और सचिन फैम्ली फ्रेन्डस हुआ करते थे।
करिश्मा की माँ बीमार रहने लगी थी और अपनी बेटी की देखभाल के लिए कुलदीप से उसे सचिन और सुप्रिया के पास रहने को भेज दिया। उस वक्त सचिन सुप्रिया की कोई औलाद नहीं हुई थी। तो इन दोनों ने करिश्मा को अपनी बेटी की तरह पाला, लेकिन यह कोई लीगल अडॉप्शन नहीं था। फिर कुछ साल बाद करिश्मा की बायोलॉजिकल मदर ठीक हो गई और अस्पताल से वापस घर लौट गई। तब तक सचिन सुप्रिया की भी अपनी एक बेटी हो गई थी जिनका नाम था श्रेया।
इसके बाद सचिन ने करिश्मा को कहा कि वो उनका घर छोड़ अपने असली माँ बाप के पास चली जाए और करिश्मा ने वैसा ही किया। जब करिश्मा बड़ी हुई तो बॉलीवुड में किस्मत आजमाने वापस भारत आई और सचिन के घर में रहने लगी। लेकिन सचिन सुप्रिया का बर्ताव उनके साथ पहले जैसा प्यार भरा नहीं था और सचिन को ये भी लग रहा था की करिश्मा उनका नाम इस्तेमाल कर फिल्मों में काम पाना चाह रही है और सचिन ने दूसरी बार भी करिश्मा को अपने घर से चले जाने को कहा।
“अगर वो मेरे अडॉफ्टेड पेरेंट्स है तो 1908 से मेरे से कॅाटाक्ट क्यों नहीं रखा?” इन इलज़ामों पर सचिन ने कभी कोई सफाई नहीं दी, लेकिन ज़ाहिर है करिश्मा के लगाए इन इलज़ामों से सचिन की भोली भाली छवि पर उनके फँस ने सवाल जरूर उठाए। हालांकि इसके पीछे सच्चाई क्या थी यह कहा नहीं जा सकता। खैर, सचिन फिल्मों में अब भी पूरी तरह अक्टिव है। वो मराठी और हिंदी दोनों ही इंडस्ट्री में बतौर ऐक्टर काम कर रहे हैं।
साल 2018 में रानी मुखर्जी के साथ इनकी हिंदी फ़िल्म हिचकी और स्वप्निल जोशी स्टारर मराठी फ़िल्म रणांगन रिलीज़ हुई। 2019 में ये हॉट स्टार की वेब सीरीज माया नगरी सिटी ऑफ़ ड्रीम्स में भी नजर आए। एस ए डाइरेक्टर इनकी आखिरी मराठी फ़िल्म अच्छी ही आशिकी 2019 में रिलीज़ हुई थी। तो फिलहाल मुझे दीजिये इजाज़त नमस्कार।