मीना कुमारी: चाँद तन्हा है आसमान तन्हा है दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएंगी ये जहाँ तनाव, ये अल्फाज़ है मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी की जो उन्होंने अपने डायरी के पन्नों में लिखा था। अपने जमाने की सबसे बड़ी सुपरस्टार मीना कुमारी सही मायनों में एक लेजेंड थी। सिनेमा जगत में ट्रेजेडी क्वीन के नाम से मशहूर मीना ज़िन्दगी भर सच्चे प्यार के लिए तरसती रही।
चाहे पिता हो या जीवन साथी दोस्त हो या रिश्तेदार पुरुष के प्रत्येक रूप से उनके दिल को तार तार ही किया। अपने इस दर्द के बारे में खुद मीना कुमारी भी लिखती है। ना हाथ थाम सके, ना पकड़ सके दामन, बड़े करीब से उठकर चला गया कोई, उन्हें किस किस ने लूटा और किस किस ने उनके साथ कब कब दगा किया। कैसे वो मरकर भी अपने बेवफा प्यार को दे गई अनमोल तोहफा।
हम आपको बताएंगे पूरी दास्तां बस बने रहिए हमारे साथ इस ब्लॉग के अंत तक।
Born: 1 August 1933, Dadar, Mumbai
Died: 31 March 1972 (age 38 years), Mumbai
Spouse: Kamal Amrohi (m. 1952–1972)
Siblings: Madhu Ali, Khursheed Bano
TV shows: Kayal, Malargal
मीना कुमारी का परीवार:
दोस्तों, नमस्कार, मीना कुमारी का जन्म हुआ था 1 अगस्त 1933 को मुंबई में। उनकी जीवन कथा उनकी नानी हेम सुंदरी मुखर्जी से शुरू करते हैं। जो रविन्द्र नाथ टैगोर के परिवार की बेटी थी और बाल विधवा थी। उन्होंने बाद में समाज की मान्यताओं के विपरीत जाकर प्यारेलाल नामक युवक के साथ प्रेम विवाह कर लिया था, लेकिन किस्मत की ऐसी मार पड़ी की फिर विधवा हो गई। उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया और दो बेटे व एक बेटी को लेकर मुंबई आ गई। नाचने गाने की कला में माहिर थी इसलिए बेटी प्रभावती के साथ पारसी थिएटर में भर्ती हो गई।
प्रभावित थिएटर में कामिनी के नाम से डांस करती थी। वहाँ उनकी मुलाकात हारमोनियम वादक मास्टर अली बक्श से हुई, जो मूल रूप से पंजाब से मुंबई आए थे। उन्होंने प्रभावित से निगाह कर उसे इकबाल बानो बना दिया। अली बक्स से इक्बाल को तीन संताने हुई और तीनों लड़कियां खुर्शीद, महजबीं बानो यानी मीना कुमारी और तीसरी महलका जो बाद में माधुरी या मधु के नाम से विख्यात हुई।
हालांकि ये किस्सा मशहूर है कि अली बक्श नन्ही मीना को इसलिए अनाथालय में छोड़ रहे थे क्योंकि वो बेटा चाहते थे लेकिन इस कहानी में ज्यादा दम नहीं लगता क्योंकि उसके बाद भी उनकी एक और बेटी पैदा हुई थी, जिसके बारे में ऐसी कोई कहानी नहीं है। हाँ घर में मूफलसी जरूर थी और इसी कारण मीना कुमारी को बचपन से ही फिल्मों में काम करना पड़ा। हालांकि वो बचपन से ही बेहद परफेक्ट थी, अक्टिंग करती थी और अपने परफॉरमेंस से बड़े बड़े अभिनेताओं को हैरत में डाल देती थी।
मीना कुमारी की फिल्मी सफर की शुरुआत:
उन्हें पहला ब्रेक दिया फ़िल्म मेकर विजय भट्ट ने। वो सिर्फ अभिनय ही नहीं करती थी बल्कि गाना भी बहुत अच्छा गाती थी। आगे चलकर वो शायरी भी लिखने लगी जिन्हें आज भी बहुत उम्दा स्तर पर माना जाता है। हाला की कहते है की पिता अलीबक्ष के लिए वो एक पैसा कमाने की मशीन भर थी। मीना कुमारी के फिल्मों के बारे में भी फैसला करने लगे थे और उनके रुपए पैसों का हिसाब भी रखते थे, लेकिन उन्हें एक तरह से कैद करके रखते थे। मीना? कुमारी महज 13 साल की उम्र से हीरोइन बन गई।
शुरुआत से उन्होंने किसी बड़े डाइरेक्टर या बड़े बजट की फ़िल्म नहीं मिली और उन्हें बी ग्रेड यानी धार्मिक फिल्मों से ही काम चलाना पड़ा। सन 1956 में आई बैजू बावरा ने उन्हें एक नई पहचान दी। उन्हें इसके लिए फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिला। फिर तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक उनकी कई फिल्मों हिट होती चली गई। हालांकि मीना कुमारी को औपचारिक शिक्षा नहीं हो पाई थी, लेकिन उन्होंने उर्दू लिखना व पढ़ना बचपन में एक मौलवी से सीखा था। वो एक आला दर्जे की इंटेलेक्चुअल थी।
उनमे टैगोर खानदान का बौद्धिक अंश था और म्यूजिशियन पिता का संगीत। हिंदी, बांगला और पंजाबी के अलावा उन्हें मुंबई की मराठी बोली भी बेहद अच्छी तरह आती थी। उनके साथ काम कर चूके कलाकार बताते हैं की वो पर्दे पर किसी किरदार को निभाती थी तो उनमे पूरी तरह डूब जाती थी। वो बेहद भावुक थी और उन्हें अपनी जाती जिंदगी में कई लोगों से प्यार हुआ लेकिन सब ने उन्हें इस्तेमाल करके छोड़ दिया।
मीना कुमारी की निजी जिंदगी:
उनके शौहर कमाल अमरोही वैसे तो पहले से दो बार शादीशुदा थे, लेकिन उन्हें मीना कुमारी का साथ मिला तो मानो उनकी जिंदगी संवर गई। उनकी लेखन में चार चाँद लग गए। मीना कुमारी को पाने के लिए उन्होंने कई जतन किए। एक फ़िल्म बन रही थी अनारकली, जिसमे कमाल ने उन्हें मिल रहे मेहनत आने से दुगुने पर साइन करवाया। लेकिन इस बीच वो अक्सीडेंट का शिकार हो गई और पुणे के एक अस्पताल में भर्ती हो गई। वो जब तक वहाँ रही तब तक कमाल रोजाना अस्पताल जाकर उनकी देखभाल करते रहे।
मीना कुमारी उनसे इतना इम्प्रेस हुई कि उनके शादी के प्रस्ताव को ना ठुकरा सकी। कमाल ने अपना नाम रखा चंदन और मीना कुमारी को मंजू नाम दिया। सर 1952 में दोनों ने शादी कर ली। कमाल अमरोही मीना कुमारी से 27 साल बड़े थे। वो एक बेहद शक्की और ओवर पोसेसिवे प्रवृतिक इंसान थे। उन्होंने अपनी इस नई बेगम पर कई बंदिशें लगा रखी थी।
उन्होंने पहले तो मीना कुमारी को किसी और प्रोडक्शन हॉउस में काम करने से रोकने की कोशिश की और जब बात नहीं बनी तो दिन भर काम करने के बाद ठीक 6:00 बजे घर जाने की शर्त पर राजी हुई। इतना ही नहीं कमाल ने उनके मेकअप रूम में किसी भी मर्द की जाने तक पर रोक लगवा दी थी।
मीना कुमारी और गुलजार का एक किस्सा:
हालांकि इस दौरान एक बार ऐसा हादसा हुआ जिसका असर दोनों के संबंधों पर भी पड़ा। कहते हैं कि मीना कुमारी ने मेकअप रूम में एक स्क्रिप्ट राईटर को बुला लिया था और अपने मालिक की हुक्मबरदारी में कमाल अमरोही के असिस्टेंट बाकरेले ने इस सुपरस्टार अदाकारा को थप्पड़ भी जड़ दिया था।
ये स्क्रिप्ट रैटर पंजाब से आए एक और इंटेलेक्चुअल लेखक व शायर थे जिनका नाम था संपूर्ण सिंह कालरा और जो फिल्मी दुनिया में गुलजार के नाम से मशहूर थे। कहा जाता है की मीना कुमारी ने गुलजार को उनके लेखन के लिए कई टिप्स भी दिए थे और फिल्मों में उनके टॉप के स्क्रिप्ट राईटर बनने के पीछे ये एक बड़ी वजह रही। गुलजार से मीना कुमारी के नजदीकी का सबूत इसी बात से मिलता है की उन्होंने वसीयत में गुलजार के नाम से वो सारे डायरिया दे दी थी जिनमें बेशकीमती शेरो शायरी और ग़ज़लें लिखी थी। बाद में गुलजार ने उन्हें नाज़ की नजमे के नाम से प्रकाशित किया।
मीना कुमारी को हलाला से गुजरना पड़ा था!:
कहते हैं कमाल अमरोही ने बीच में एक बार मीना कुमारी को तलाक भी दे दिया था और इसके बाद उन्हें दोबारा वापस भी बुला लिया। फ़िल्म इंडस्ट्री में यह किस्सा भी मशहूर है। किस घर वापसी के लिए मीना कुमारी को हलाला की रस्म से भी गुजरना पड़ा था। और इसके लिए जीनत अमान के पिता अमानुल्लाह खान जो कमाल के असिस्टेंट रह चूके थे, का सहारा लेना पड़ा। हालांकि इस किस्से का कोई ठोस सबूत नहीं है और मशहूर पत्रकार विनोद मेहता ने जो मीना कुमारी की जीवनी लिखी है उसमें भी इस बात का जिक्र नहीं है। इसलिए हम फ़िलहाल इस थियरी को पूरी तरह से तस्दीक करते हैं।
मीना कुमारी का धर्मेंद्र ने फायदा उठाया:
बहरहाल, इस थप्पड़ वाले हादसे के बाद से मीना कुमारी जाकर अपनी छोटी बहन मधु और महमूद के उस बंगले में रहने लगी जो कभी उन्होंने ही खरीद करके दिया था। बाद के वर्षों में महमूद का उनकी बहन से भी तलाक हो गया। जीस किस्से पर कभी और चर्चा करेंगे। इसी दौरान उनकी मुलाकात हुई पंजाब से ताजा ताजा मुंबई आए गबरू जवान धर्मेंद्र से। ये नौजवान कलाकार जहाँ एक तरफ फॅक्शन और खूबसूरती से भरपूर था, वही यह उम्दा उर्दू शायरी और गज़लों का भी अच्छा जानकार था।
मीना कुमारी ने धर्मेन्द्र को अक्टिंग भी सिखायी और उन्हें कई फिल्मों भी दिलवाई, लेकिन कहते हैं किस पंजाबी कलाकार ने भी उन्हें बस एक सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया और जल्द ही उनसे दूर चला गया।
मीना कुमारी की फिल्म पाकीज़ा का एक किस्सा:
इस बीच कमाल अमरोही में एक फ़िल्म शुरू की जिसका नाम था पाकिजा। इस फ़िल्म का बनना अपने आप में एक कहानी है। लेकिन इन शार्ट यहाँ यही कहेंगे कि कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को लेकर सन 1956 में फ़िल्म शुरू की पाकिजा इसके कुछ सीन शूट भी हो गए, लेकिन इसके बाद दोनों में अनबन हो गई और मीना कुमारी ने आगे का काम करने से इंकार कर दिया। कहते हैं की कमाल की बेरुखी सुनहो ने अपने आप को शराब में डबो लिया। वो हर वक्त शराब पीती रहती थी, जिससे उनके लिवर पर बुरा असर पड़ा था। वो मानसिक रूप से भी एकदम टूट गयी थी।
उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा और इलाज के लिए भी लंडन भी जाना पड़ा। जब वो लंडन से वापस लौटी तो हालात कुछ ठीक थी लेकिन डॉक्टर ने साफ कह दिया था की वो कुछ ही महिनों की मेहमान है। इधर कमाल अमरोही को लग रहा था की उनका पैसा और स्क्रिप्ट दोनों बर्बाद हो जाएंगे। कहते है कमाल ने एमोशनल कार्ड खेला और सुनील दत्त, नरगिस, ख्याम और उनकी गायिका पत्नी जगजीत कौर आदि के सामने अपना दुखड़ा रोया।
ये सब मीना कुमारी की निजी मित्र होने का दावा करते थे। उन सब ने मिलजुल कर मीना कुमारी को पाकिजा के लिए राजी करने की एक आखरी कोशिश की और वो मान गई। हाला की उन्होंने मेहनत आने के तौर पर महज एक रूपया लेकर काम करने का वायदा किया, लेकिन साथ ही कुछ शर्ते भी रखी। जिनमें से पहले तो थी कमाल, उन्हें तलाक देकर शादी के बंधन से मुक्त करे। मीना पाकिजा में काम करते वक्त अपने निजी जीवन में दखलअंदाजी बर्दाश्त करने के मूड में नहीं थी। फ़िल्म को कलर में शूट करने पर भी रजामंदी हुई।
जब 1956 में शूटिंग शुरू हुई तो अशोक कुमार को हीरो रखा गया था, लेकिन जब 1968 में फ़िल्म की दोबारा शूटिंग शुरू हुई तब तक अशोक कुमार बूढ़े हो चले थे। कहा जाता है की शुरू में धर्मेन्द्र को लीड रोल दिया जाना था। लेकिन कमाल अमरोही ने मीना कुमारी से उनकी नजदीकियों के कारण उन्हें साइन नहीं किया। बाद में या रोल राजकुमार के पास गया। हालांकि मीना कुमारी का शरीर साथ नहीं दे रहा था और आलम ये था कि कुछ लंबे व थकान वाले डान्सिंग सीन उनकी बॉडी डबल पन्ना खा से करवाने पड़े। बहरहाल, जब पाकिजा बनकर तैयार हुई और रिलीज़ हुई तो दर्शकों ने कुछ खास पसंद नहीं किया।
दरअसल कमाल अमरोही ने अपने ज़िन्दगी में इससे पहले सिर्फ दो फिल्मों बनाई थी, जिनमें सिर्फ एक महल ही हिट रही थी। उनकी अगली फ़िल्म दायरा सुपर स्टार मीना कुमारी के होने के बावजूद बुरी तरह पिटि थी।
मीना कुमारी का साथ अंत में सब ने छोड़ दिया:
मीना कुमारी फ़िल्म में काम करने के कारण बुरी तरह थक गई थी और जब दर्शकों का कमजोर रिस्पांस देखा गया तो उनके भावुक दिल ने इससे बर्दाश्त नहीं किया। उनके सिरोंसिस की बिमारी दोबारा लौट रही थी क्योंकि उन्हें पाकिजा में काम एमोशनल कार्ड के जरिए करवाया गया था तो पैसे मिलने की उम्मीद भी नहीं थी। कहते हैं जब वो सेट एलिजाबेथ नर्सिंग होम में भर्ती हुई तो कमाल ने फ़िल्म फ्लॉप होने की दुहाई देते हुए पैसे देने के नाम पर हाथ खड़े कर दिए। फ़िल्म के महंगे सेटों पर ही लाखों रुपए खर्च किए गए थे और इन्वेस्टरों से सारा इन्वेस्टमेंट मीना कुमारी के नाम पर ही लिया गया था।
खैर, इधर नर्सिंग होम ने भरपूर कोशिश की लेकिन उन्हें बचाना संभव नहीं हुआ। मीना कुमारी इस दौर की सबसे महंगी अदाकारा थी और जब तक उन्होंने फिल्मों में काम किया तब तक उन्हें पैसों की कोई कमी नहीं रही। उन्होंने हमेशा पूरे परिवार का खर्चा उठाया और उनके दूर दूर के रिश्तेदार मित्र आकर उनकी मेहमान नवाजी का फायदा उठाते थे। लेकिन जब वो बीमार पड़ी थी तो एक एक कर सबने किनारा कर लिया। यहाँ तक की अस्पताल का बिल भरने के नाम पर सब गायब हो गए।
बताते हैं कि कमाल अमरोही ने अस्पताल में कहा कि उन्होंने मीना कुमारी को तलाक दे दिया है इसलिए वो पैसे देने के जिम्मेदार नहीं है। गुलजार और धर्मेन्द्र ने भी पल्ला झाड़ लिया। यहाँ तक कि उनकी बहन के पति महमूद जिन्हें मीना कुमारी ने एक बंगला तक खरीद के दिया था, उन्होंने इलाज के लिए पैसे देने से मना कर दिया था। इसी सभ्य समाज में एक मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री की लाश को लावारिस घोषित करने की नौबत आ गई थी। बताया जाता है की अस्पताल वालो को कहना पड़ा की उन्हें लाश को लावारिस घोषित करके बी एम सी वालों को देना पड़ेगा।
जब ये खबर अखबारों में छपी तब तक अंजान पारसी व्यक्ति अस्पताल आया और बिल चुका कर मीना कुमारी को शव को सम्मान के साथ इस्लामिक विधि से कब्रिस्तान में दफन करवाया। कुछ लोगों का यह भी कहना था कि अस्पताल के एक डॉक्टर मीना कुमारी के फैन थे, जिन्होंने ये फीस अदा की। मीना कुमार की मौत के बाद दर्शकों की सहानुभूति उमड पड़ी और पाकिजा सुपरहिट हो गई। मीना कुमारी के हार्डकोर फैंस तो उनकी अक्टिंग की आखिरी झलक पाने के लिए दर्जनों बार फ़िल्म देख रहे थे। कमाल अमरोही की सनक यही खत्म नहीं हुई।
उन्होंने फ़िल्म रजिया सुल्तान में धर्मेंद्र को हेमा मालिनी के साथ मुँह मांगी कीमत देकर शूट कर लिया, लेकिन उस फ़िल्म में स्क्रिप्ट की दुहाई देकर उनके मुँह पर कालिख पोत दी।
तो दोस्तों आपको हमारी स्टोरी कैसी लगी? बॉक्स में जरूर बताये, नमस्कार।